lock2.bmp (image) [lock2.bmp]

Sunday, March 21, 2010

आइना


आइना हूं झूठ कहां भाता है मुझे,
जो दिखाओ वही नज़र आता है मुझे,
मेरी फितरत कौन बदल पाया है भला,
लाख तोड़ो सच ही नज़र आता है मुझे,
किसी को भी हाल-ए-दिल नहीं कहता ,
हर शख्‍स हंसता नज़र आता है मुझे,
सबसे हंस हंस के जितना मिलता है,
वो उतना ही दुखी नज़र आता है मुझे,
सच वालों के रूबरू होकर प्रदीप,
अपना क़द अदना नज़र आता है मुझे ।