tag:blogger.com,1999:blog-40864351111521759712024-03-07T15:55:27.360-08:00Dil Ki Duniaक्योंकि दिल हमेशा सही होता है और कभी झूठ नहीं बोलता !Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.comBlogger105125tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-74701069652019029482016-09-22T02:14:00.000-07:002016-09-22T02:14:42.633-07:00तुम्हारे जन्मदिन पर 🌹🌹🌹🌹 <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुम्हारे जन्मदिन पर<br />
🌹🌹🌹🌹<br />
जो हो सकता ,<br />
तो चमन से फूल सारे<br />
लेकर गुलदस्ता बनाता<br />
और जन्मदिन विश करने<br />
तुम्हारे घर मैं खुद आता !<br />
जो हो सकता <br />
तो गगन के सब सितारों<br />
को , हथेली में सजाकर <br />
हर अंधेरे को रोशन करने<br />
तुम्हारे घर मैं खुद आता!<br />
जो हो सकता <br />
तो जमाने भर की खुशियां<br />
समेट कर मैं खुद उन्हें <br />
लेकर पूरे जतन के साथ<br />
तुम्हारे घर तक पहुंचाता !<br />
<br />
मगर यह हो न सका <br />
न चमन ने ही सब फूल दिए<br />
न गगन ने सब सितारे दिए<br />
इसलिए ऐ दोस्त, दिल से<br />
यही दुआ है कि तुम सदा<br />
फूल सी महकती रहो ,<br />
सितारों सी चमकती रहो<br />
ज़िंदगी में कोई गम न हो<br />
साल दर साल उम्र भर<br />
चिड़ियों सी चहकती रहो . . . <br />
<br />
<br /></div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-5379708098476396152016-09-16T07:20:00.000-07:002016-09-16T07:20:38.710-07:00मैं खुश हूँ आज भी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
.....<br />
मैं खुश हूँ आज भी <br />
.......<br />
खुश तो हूँ मैं आज भी<br />
यकीनन !<br />
क्योंकि दुखी होता तो<br />
वक्त ठहर गया होता ,<br />
लेकिन इसे तो जैसे <br />
पंख लगे हैं, आज भी<br />
ये सरपट दौड़ रहा है . .<br />
कब दिन निकलता है ,<br />
कब रात होती है ,<br />
पता ही नहीं चलता !<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
स्कूल से आते ही<br />
बस्ता पटक कर निकल जाना<br />
और कंचे व काई -डंडा <br />
खेलते -खेलते<br />
कब सांझ हो गई !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
शाम को घर आते ही,<br />
छुपम -छुपाई तो कभी, <br />
पकड़म-पकड़ा खेलते- खेलते<br />
कब रात हो गई !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
इंटर कॉलेज से लौटते समय<br />
जमौए खाते - खाते<br />
या आम खाते- खाते<br />
कब दोपहर ढल गई !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
काॅलेज जाने के लिए<br />
बस में बैठे दूर से ही ,<br />
उसे निहारते -निहारते<br />
कब स्टाॅप आ गया ! <br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
फिजिक्स की नीरस क्लास में<br />
देखते रहते थे एक कोने में<br />
कि इक बार तो देखेगी !<br />
इस आस में,<br />
पीरियड कैसे बीत जाता था !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
गांव की गली में खड़े - खड़े<br />
उसकी सिर्फ एक झलक<br />
देखने के लिए,<br />
पहर कैसे बीत जाती थी !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
खेत में काम करते हुए<br />
पड़ोस में गेहूं काटती लड़की<br />
को देखते - देखते और <br />
काम करते - करते <br />
कब सुबह से दोपहर<br />
और दोपहर से सांझ हो गई !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
ठीक वैसे ही जैसे -<br />
कभी ट्रेन के सफर में साथ<br />
होती थी सुंदर सी सवारी<br />
और स्टेशन कब आ गया !<br />
पता ही नहीं चलता था ।<br />
आज ऐसा कुछ भी नहीं है,<br />
मगर वक्त दौड़ रहा है. .<br />
न किसी को देखने की आस<br />
न खेलना, न उछल कूद,<br />
न बस, न ट्रेन, न स्कूल,<br />
न काॅलेज और न गली का चौराहा।<br />
तो फिर वक्त क्यों दौड़ रहा है ?<br />
खूब सारा काम और<br />
ढेर सारी किताबें ,<br />
टेलीविजन की मारधाड़ से दूर,<br />
कुदरत की गोद में ..<br />
यह अलग ही दुनिया है ,<br />
जहां काम के साथ-साथ<br />
दोस्तों से चैटिंग करते -करते<br />
थक जाओ तो घूम आओ ,<br />
किताब पढ़ो , लिखो या<br />
सो जाओ, गहरी नींद में...<br />
सुबह से दोपहर ,<br />
दोपहर से सांझ और<br />
सांझ से रात , फिर रात से सुबह<br />
कैसे होती है, पता ही नहीं चलता !<br />
इसीलिए मैं आज भी खुश हूँ ।<br />
....<br />
प्रदीप कुमार</div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-86240096833397390012016-09-13T20:18:00.000-07:002016-09-13T20:18:02.269-07:00हिंदी दिवस क्यों ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हिंदी दिवस क्यों ?<b> </b>शीर्षक देखकर आप ज़रूर सोचने लगे होंगे कि कैसा पागल है ? कैसा हिंदी विरोधी है ? लेकिन साल में केवल एक दिन हिंदी दिवस या एक पखवाड़े को हिंदी पखवाड़े के रूप में मना कर आपको ऐसा नहीं लगता जैसे कनागत मना लिए हों। मतलब एक दिन याद करो और भूल जाओ। <br />
हिंदी दिवस हो या किसी की पुण्यतिथि या जयंती ऐसे सभी दिवस मनाने के बाद क्या वो हमें याद रहते हैं ? बिलकुल नहीं , तो फिर इसकी बधाई कैसे दी जा सकती है ?<br />
क्या इस देश में कभी अंग्रेजी दिवस मनाया जाता है ? फिर भी देखो कितनी फल-फूल रही है। <br />
तो अगर सचमुच हिंदी की प्रगति चाहते हैं तो क्यों न ऐसा किया जाए जिससे हमें दिवस मनाने की ज़रुरत ही न पड़े। <br />
<b>क्या करें </b><br />
१- हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करें<br />
२- हिंदी बोलने में शर्म अनुभव मत करें<br />
३- हिंदी को सरकारी नौकरी में अनिवार्य बनाने के लिए संघर्ष करें<br />
४- सरल हिंदी का प्रयोग करें<br />
५- राजभाषा विभाग की मुश्किल हिंदी का विरोध करें<br />
६- हिंदी में मौलिक लेखन को बढ़ावा दिया जाये<br />
७- सभी सरकारी कामकाज हिंदी में हो<br />
८- न्यायपालिका हिंदी और स्थानीय भाषा में काम करे<br />
९- अनुवाद को प्रोत्साहन दिया जाये<br />
१०- हिंदी को उसका सम्मान दिलाने की शुरुवात खुद से करें<br />
<br />
<br /></div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-19901216437640571112016-09-12T08:12:00.000-07:002016-09-12T08:12:13.674-07:00"मुश्किल "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">"मुश्किल "</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">जी हाँ, बहुत मुश्किल से </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">मिलता है कोई ऐसा -</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">जिसे देखते ही </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">प्यार हो जाता है, </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">आंखों को उसके</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">रूप -रंग और </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">हाव-भाव में </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">बस </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">प्यार ही प्यार </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">नज़र आता है, </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">दिल कहता है -</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">कह दे कि तू ही है </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">जिसे मैं जन्म - जन्म से</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">ढूँढ रहा हूँ . </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">मगर ज़बान है कि </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">हिलती ही नहीं, </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">होंठ हैं कि </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">खुलते ही नहीं, </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">तब महसूस </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">होता है कि -</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">जितना मुश्किल है </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">प्रेम का पाना</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">उससे भी ज्यादा </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">मुश्किल है </span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">प्रेम का इजहार ....</span><br style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;" /><span style="background-color: white; font-family: arial, sans-serif; font-size: 12.8px;">प्रदीप कुमार</span></div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-21815324415224124602016-09-08T05:39:00.003-07:002016-09-08T05:39:46.153-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जाने किस बात का क्या क्या मानी निकाला जाए ,<br />
बस यही सोचकर हम उनकी तारीफ़ नहीं करते। </div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-52229255990197007392016-09-07T07:35:00.001-07:002016-09-07T07:35:24.371-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दो गज़ ज़मीन न मिली तो उसका ग़म नहीं ,<br />
तेरे दिल में न रहने का अफ़सोस रह गया . </div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-66828344564942092982013-07-17T10:49:00.002-07:002013-07-17T10:49:55.679-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial; font-size: x-small;">भ्रष्टाचार के आरोप के बाद </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
सलमान आलाकमान को सफाई देने गए -</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
मैंने कुछ नहीं किया ,</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
ये सब आरोप झूठे हैं .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
अच्छा ! आलाकमान चौंकी .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
जी - सलमान बोले -</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
चाहे बेनी से पूछ लो ,</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
मैं इतने से रुपयों के लिए </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
अपना इमान नहीं बिगाड़ सकता .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
जहां खरबों के खेल होते हों .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
लाखों में पाखानों की मरम्मत होती हो .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
वहाँ मैं सिर्फ़ 71 लाख में मुंह काला करूंगा </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
तो 2 जी और कोयले से कमाई इज्ज़त</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
ख़ाक में मिल जाएगी .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
यह सुनकर आलाकमान को यकीन हो गया </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
कि सलमान बेगुनाह है .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
क्योंकि जिस देश के नेताओ ने चारे और चारकोल </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
को पचाकर 2 जी और कोयले की तरफ क़दम बढ़ा दिए हों </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
उन्हें अब बैशाखी की क्या ज़रुरत ? </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
बस फिर क्या था आलाकमान ने विश्वास </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
के साथ फ़ैसला सुना दिया -</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
बेशक तुम बेगुनाह हो लेकिन </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
इन आरोंपों से सबकी बहुत बेइज्जती हुई है </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
अब उसकी भरपाई तुम्हें ही करनी होगी ,</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
जाओ तुम्हें विदेश में भारत की शान </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है .</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
उम्मीद है कोई ओछा काम नहीं करोगे </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
और हमारी घोटालों की नीति की </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial; font-size: small;">
धाक दुनिया भर में जमाओगे ! </div>
</div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-54640690374063453742012-10-29T08:05:00.000-07:002012-10-29T08:05:21.336-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h2 style="text-align: left;">
उम्मीद</h2>
भ्रष्टाचार के आरोप के बाद<br />
सलमान आलाकमान को सफाई देने गए -<br />
मैंने कुछ नहीं किया ,<br />
ये सब आरोप झूठे हैं .<br />
अच्छा ! आलाकमान चौंकी .<br />
जी - सलमान बोले -<br />
चाहे बेनी से पूछ लो ,<br />
मैं इतने से रुपयों के लिए<br />
अपना इमान नहीं बिगाड़ सकता .<br />
जहां खरबों के खेल होते हों .<br />
लाखों में पाखानों की मरम्मत होती हो .<br />
वहाँ मैं सिर्फ़ 71 लाख में मुंह काला करूंगा<br />
तो 2 जी और कोयले से कमाई इज्ज़त<br />
ख़ाक में मिल जाएगी .<br />
यह सुनकर आलाकमान को यकीन हो गया<br />
कि सलमान बेगुनाह है .<br />
क्योंकि जिस देश के नेताओ ने चारे और चारकोल<br />
को पचाकर 2 जी और कोयले की तरफ क़दम बढ़ा दिए हों<br />
उन्हें अब बैशाखी की क्या ज़रुरत ?<br />
बस फिर क्या था आलाकमान ने विश्वास<br />
के साथ फ़ैसला सुना दिया -<br />
बेशक तुम बेगुनाह हो लेकिन<br />
इन आरोंपों से सबकी बहुत बेइज्जती हुई है<br />
अब उसकी भरपाई तुम्हें ही करनी होगी ,<br />
जाओ तुम्हें विदेश में भारत की शान<br />
बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है .<br />
उम्मीद है कोई ओछा काम नहीं करोगे<br />
और हमारी घोटालों की नीति की<br />
धाक दुनिया भर में जमाओगे !<br />
</div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-15607489859294102092012-10-24T07:48:00.002-07:002012-10-24T07:48:35.937-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h2 style="text-align: left;">
रावण की मुक्ति </h2>
<br />
<br />
रावण !<br />
आज दशहरे के बाद भी नहीं जला ,<br />
क्योंकि आज उसे राम ने नहीं .<br />
एक पापी और भ्रष्टचारी ने जलाने के लिए<br />
तीर चलाया तो उसका तीर<br />
रावण तक पहुंचा ही नहीं .<br />
जब तक बाकी लोग रावण<br />
को जलाने के लिए तीर चढ़ाते ,<br />
रावण बोल उठा - ठहरो !<br />
कई सदियों से तुम हर साल<br />
मुझे जलाते हो ,<br />
लेकिन मैं आज तक नहीं मरा .<br />
और हैरत तो ये है कि तुमने राम<br />
की तरह मेरे बार बार जीने का कारण<br />
भी जानना नहीं चाहा .<br />
यह सुनकर भीड़ को सांप सूंघ गया<br />
मगर फिर सब हिम्मत करके बोले -<br />
किससे पूछें ?<br />
अब विभीषण भी तो नहीं है .<br />
रावण बोला - तो अब तक भी तुम वहीं जी रहे हो .<br />
अब कोई विभीषण नहीं आएगा<br />
तुमने राम को भी नहीं जीने दिया .<br />
तो विभीषण किस खेत की मूली है .<br />
लेकिन मुझे तुम पे बहुत दया आ रही है<br />
सदियों से तुम्हारी परेशानी मुझसे सहन नहीं होती<br />
मैं खुद अब बार बार जीने से उकता गया हूँ .<br />
क्योंकि राम की धरती के आधुनिक रावण<br />
मुझ ज्ञानी को चिढाने लगे हैं<br />
राम तो हैं नहीं रावण ही मुझे जलाने लगे हैं<br />
फिर मैं कैसे जलूँगा ?<br />
सुनो ! अगर मुझे सचमुच जलाना चाहते हो<br />
तो जिन पापियों और भ्रष्टाचारियों को<br />
मुझे जलाने के लिए बुलाते हो ,<br />
अबकी बार उन्हें जलाओ .<br />
एक बार वो खत्म हो गये<br />
तो रावण भी जल जाएगा और<br />
मुझे भी मुक्ति मिल जाएगी .<br />
<div>
<br /></div>
<br />
</div>
Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-2433639963582785442012-09-22T21:46:00.001-07:002012-09-22T21:46:49.443-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
समाधान </h2>
पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और एक कम्पोजर को देकर दूसरा खुद ही पढने लगा. <br />-----------------------------------------------<br />तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे ----- मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी बेटी वन्या के नाम के साथ यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .<br />हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला <br /> ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर बिटिया और जोर से रोने लगी. <br />मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है. <br />फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया . <br />हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी. <br />क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा. <br />अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी. <br />मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?<br />सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली . <br />हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी . <br />यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं . वो वन्या को छेड़ने लगीं .<br />आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी ने वन्या से पूछा .<br />मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली. <br />बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा. <br />हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया . <br />वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया . <br />तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा. <br />वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही. <br />चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए ? पेरेंट मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें एक मासूम लड़की पर एक साथ टूट पड़ी. <br />
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .<br />एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली. <br />वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी . <br />मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत अच्छी बनाते हैं. <br />वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी ने कहा. <br />करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .<br />अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा. <br />जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं <br />
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .<br />ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया . <br />पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.<br />मोहन ने सुना तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ? <br />पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी आंटी . वन्या बोली.<br />हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .<br />पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना . मैं उन सब आंटियों को देकर आऊंगी. वन्या बोली. <br />हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी. मोहन ने कहा. <br />जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .<br /> एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?<br />मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया - बेटी की योजना को ज़रूर पूरा करेगा . <br />बिलकुल पक्का बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . <br />----------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही संपादक को अपनी बेटी भी याद आ गई और उसने कम्पोजर से कहा. ठीक है भाई सेट करो. ठीक है . मैंने पढ़ ली है .<br />
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Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-23390800447963194942012-09-22T21:45:00.005-07:002012-09-22T21:45:52.413-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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समाधान </h2>
पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और एक कम्पोजर को देकर दूसरा खुद ही पढने लगा. <br />-----------------------------------------------<br />तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे ----- मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी बेटी वन्या के नाम के साथ यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .<br />हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला <br /> ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर बिटिया और जोर से रोने लगी. <br />मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है. <br />फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया . <br />हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी. <br />क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा. <br />अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी. <br />मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?<br />सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली . <br />हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी . <br />यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं . वो वन्या को छेड़ने लगीं .<br />आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी ने वन्या से पूछा .<br />मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली. <br />बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा. <br />हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया . <br />वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया . <br />तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा. <br />वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही. <br />चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए ? पेरेंट मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें एक मासूम लड़की पर एक साथ टूट पड़ी. <br />
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .<br />एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली. <br />वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी . <br />मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत अच्छी बनाते हैं. <br />वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी ने कहा. <br />करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .<br />अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा. <br />जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं <br />
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .<br />ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया . <br />पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.<br />मोहन ने सुना तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ? <br />पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी आंटी . वन्या बोली.<br />हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .<br />पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना . मैं उन सब आंटियों को देकर आऊंगी. वन्या बोली. <br />हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी. मोहन ने कहा. <br />जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .<br /> एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?<br />मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया - बेटी की योजना को ज़रूर पूरा करेगा . <br />बिलकुल पक्का बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . <br />----------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही संपादक को अपनी बेटी भी याद आ गई और उसने कम्पोजर से कहा. ठीक है भाई सेट करो. ठीक है . मैंने पढ़ ली है .<br />
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Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-10930812196642711202012-09-22T21:45:00.003-07:002012-09-22T21:45:51.674-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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समाधान </h2>
पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और एक कम्पोजर को देकर दूसरा खुद ही पढने लगा. <br />-----------------------------------------------<br />तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे ----- मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी बेटी वन्या के नाम के साथ यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .<br />हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला <br /> ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर बिटिया और जोर से रोने लगी. <br />मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है. <br />फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया . <br />हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी. <br />क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा. <br />अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी. <br />मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?<br />सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली . <br />हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी . <br />यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं . वो वन्या को छेड़ने लगीं .<br />आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी ने वन्या से पूछा .<br />मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली. <br />बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा. <br />हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया . <br />वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया . <br />तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा. <br />वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही. <br />चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए ? पेरेंट मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें एक मासूम लड़की पर एक साथ टूट पड़ी. <br />
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .<br />एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली. <br />वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी . <br />मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत अच्छी बनाते हैं. <br />वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी ने कहा. <br />करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .<br />अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा. <br />जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं <br />
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .<br />ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया . <br />पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.<br />मोहन ने सुना तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ? <br />पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी आंटी . वन्या बोली.<br />हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .<br />पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना . मैं उन सब आंटियों को देकर आऊंगी. वन्या बोली. <br />हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी. मोहन ने कहा. <br />जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .<br /> एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?<br />मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया - बेटी की योजना को ज़रूर पूरा करेगा . <br />बिलकुल पक्का बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . <br />----------------------------------------------------------------------------------------------------<br />
लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही संपादक को अपनी बेटी भी याद आ गई और उसने कम्पोजर से कहा. ठीक है भाई सेट करो. ठीक है . मैंने पढ़ ली है .<br />
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Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-58353481418849285832012-09-22T21:41:00.001-07:002012-09-22T21:47:43.336-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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समाधान </h2>
पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और एक कम्पोजर को देकर दूसरा खुद ही पढने लगा. <br />-----------------------------------------------<br />तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे ----- मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी बेटी वन्या के नाम के साथ यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .<br />हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला <br /> ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर बिटिया और जोर से रोने लगी. <br />मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है. <br />फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया . <br />हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी. <br />क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा. <br />अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी. <br />मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?<br />सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली . <br />हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी . <br />यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं . वो वन्या को छेड़ने लगीं .<br />आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी ने वन्या से पूछा .<br />मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली. <br />बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा. <br />हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया . <br />वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया . <br />तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा. <br />वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही. <br />चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए ? पेरेंट मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें एक मासूम लड़की पर एक साथ टूट पड़ी. <br />
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .<br />एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली. <br />वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी . <br />मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत अच्छी बनाते हैं. <br />वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी ने कहा. <br />करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .<br />अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा. <br />जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं <br />
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .<br />ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया . <br />पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.<br />मोहन ने सुना तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ? <br />पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी आंटी . वन्या बोली.<br />हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .<br />पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना . मैं उन सब आंटियों को देकर आऊंगी. वन्या बोली. <br />हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी. मोहन ने कहा. <br />जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .<br /> एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?<br />मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया - बेटी की योजना को ज़रूर पूरा करेगा . <br />बिलकुल पक्का बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . <br />------<br />
लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही संपादक को अपनी बेटी भी याद आ गई और उसने कम्पोजर से कहा. ठीक है भाई सेट करो. ठीक है . मैंने पढ़ ली है .<br />
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Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-61356271825664032562012-09-14T06:33:00.004-07:002012-09-14T06:33:49.662-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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छोटी छोटी खुशियाँ</h2>
ज़िन्दगी में अगर किसी से प्यार या नफरत न हो तो ज़िन्दगी कितनी बेरंग और नीरस होती है . ये बात वो इन्सान बेहतर समझ सकता है जिसने कभी किसी से मोहब्बत या नफरत न की हो. सच कहें तो ज़िन्दगी एक सफ़र है और सफ़र में हमसफ़र की ज़रुरत सभी को पड़ती है क्योंकि ज़िन्दगी का लम्बा और मुश्किल सफ़र अकेले नहीं काटा जा सकता . इसलिए लोग मोहब्बत करते हैं और मोहब्बत नहीं निभती या महबूब बेवफा हो जाए तो नफरत हो जाती है. बेशक मोहब्बत और नफरत विपरीत शब्द हों लेकिन दोनों ही वक़्त आने पर इंसान के हमसफ़र बनते हैं और ज़िन्दगी का सफ़र आसान हो जाता है. मोहब्बत में इंसान एक दूसरे को जितना समझने लगें समझो मोहब्बत उतनी गहरी हो गई . दीप की ज़िन्दगी में भी जब मोहब्बत का फूल खिला तो उसे भी लगा जैसे थमी हुई ज़िन्दगी दौड़ने लगी और सफ़र कितना आसान हो गया . ऐसे में यदि कोई यह दावा करने लगे तो कुछ गलत नहीं होता -<br />
हमें अच्छी तरह मालूम है उनके भी दिल क़ी हालत,<br />
वो जिनकी याद में हम रात भर करवट बदलते हैं .<br />
आज दीप कुछ पीछे मुड़कर देखता है तो उसे एक एक बात याद आने लगती हैं . दीप को भटकती हुई आत्मा कहें तो गलत नहीं होगा . उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ ऐसे होता है क़ि भाग्य पर भरोसा करना ही पड़ता है . अब भला इसे आप भाग्य नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे क़ि जिस फेसबुक पेज पर उसे अपनी सबसे अच्छी दोस्त मिली वो पेज उसका नहीं था. फिर वो दोस्त कब उसकी जान बन गई पता ही नहीं चला . दरअसल हुआ यूं क़ि एक दिन दीप ने अपना मेल ओपन करने का प्रयास किया तो वो ओपन ही नहीं हुआ. बहुत कोशिश की और पासवर्ड बदला . तब कहीं मेल ओपन हुआ . अब मेल देखते ही उसके होश उड़ गए. किसी ने उसका मेल हैक कर लिया था. हैकर दीप के मेल से चैट करता था. उसने दीप के दोस्तों को चेतावनी भी दी कि अब इस मेल आई डी को भूल जाए. खैर अब , दीप चौकस हो चुका था. उसने चैट हिस्टरी चैक की. अपने सभी दोस्तों को मेल किया और बताया कि उसका मेल किसी ने हैक कर लिया था . फिर अपना नाम और कुछ निजी डिटेल बदली. इस तरह उसने पासवर्ड सेफ कर लिया.<br />
एक दिन दीप ने मेल ओपन किया तो उसमे दोस्ती का अनुरोध था लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि अनुरोध किसी नीरज के नाम था. दीप ने फेसबुक का वो पेज खोलना चाहा तो वो खुला ही नहीं . खुलता भी कैसे पासवर्ड तो मालूम ही नहीं था क्योंकि वो फेसबुक पेज किसी और का था. बार बार क्लिक करने पर सन्देश आया कि पासवर्ड भूल गए हैं तो कुछ डिटेल दें . डिटेल देने पर नए पासवर्ड के लिए दीप के मेल में लिंक आ गया . लिंक पर जाने से वो पेज खुल गया. अब चोर दीप की आँखों के सामने था. उसने मन ही मन उसे तंग करने की ठान ली .<br />
नए दोस्तों के अनुरोध आते तो कभी कभी दीप उस पेज को खोलने लगा . इस बीच नीरज पेज खोलने की कोशिश करता तो पासवर्ड के लिए लिंक आता . लेकिन ये चोर का दुर्भाग्य कि जब उसने दीप का मेल हैक किया हुआ था तो उसने अपना फेसबुक पेज दीप के मेल से जोड़ दिया था. बस यहीं उसने गलती कर दी थी . वो कहते हैं ना कि अपराधी कितना भी सयाना हो कोई न कोई गलती ज़रूर करता है.<br />
इसी बीच दीप ने गीतिका को दोस्ती का अनुरोध भेजा तो उसने मंज़ूर कर लिया . कहते है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी . बात बढ़ी और गीतिका कब दीप की सबसे अच्छी दोस्त बन गई पता ही नहीं चला . फिर दोनों ने जी टाक पर बात शुरू कर दी और बात फोन तक भी जा पहुंची . दीप अक्सर उसके साथ बात करता . कभी डरता डरता फोन भी करने लगा . उसने अपना डर बताया तो गीतिका ने किसी भी वक़्त बात करने की मंज़ूरी दे दी.<br />
गीतिका बहुत अच्छी लड़की है. मन की साफ़ और मासूम लेकिन इरादे की पक्की . वो ज़िन्दगी में कुछ बनना चाहती है. लेकिन नेट ज्यादा इस्तेमाल करने के कारण अपनी पढ़ाई पर मन नहीं लगा पाती. दीप ने उसे नेट का इस्तेमाल कम करने की सलाह दी तो वो मान भी गई . मगर दीप को आदत सी हो गई थी गीतिका को ऑंनलाइन देखने की. इसलिए उसे कभी कभी अफ़सोस होता कि उसने गीतिका को ऐसी सलाह क्यों दी ? लेकिन फिर अपना स्वार्थ छोड़ कर गीतिका के मकसद के बारे में सोचता तो यह बात ठीक लगती . अजीब उलझन थी खुद ही किसी को इलाज बताया और उसका असर भी खुद पर ही पड़ा . ये सब दोस्ती गाढ़ी होने के लक्षण थे . लेकिन दीप गीतिका को कैसे कहता कि ऑंनलाइन ज्यादा रहा करो , कि मैं हर वक़्त तुम्हे अपनी आँखों के सामने देखना चाहता हूँ . कि तुमसे खूब बाते करना चाहता हूँ . मगर कहे कैसे उसने तो खुद ही गीतिका को नेट का इस्तेमाल कम करने कि सलाह दी थी. कभी कभी खुद ही कोई लक्ष्मण रेखा खींचकर उसे लांघना कितना मुश्किल होता है ? नेट कम इस्तेमाल करने की सलाह देने वाला कैसे कहे कि ऑनलाइन रहा करो और कि मेरा मन करता है तुमसे खूब बातें करूं .<br />
फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई . दीप को पता ही नहीं चला . दरअसल इसमें भी भाग्य ने ही साथ दिया. वरना दीप तो ज़िन्दगी भर अपनी मोहब्बत का इज़हार ना कर पाता और शायद उसकी मोहब्बत ५० प्रतिशत ही रह जाती. लेकिन भाग्य को यह मंज़ूर नहीं था. एक दिन गीतिका ने ज़िक्र छेड़ा तो बातों बातों में दीप ने अपने मन की बात बता दी. इस तरह दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई .<br />
दीप और गीतिका की ठहरी हुई ज़िन्दगी अब दौड़ने लगी थी . एक दिन गीतिका ने बताया कि वो बहुत उदास है और अपनी मौजूदा नौकरी से तंग आ चुकी है , दोनों ने बहुत देर बात की तो पता चला कि दरअसल वो नौकरी से नहीं बल्कि अपनी सहकर्मियों से तंग आ चुकी है, वहाँ के माहौल से तंग है .<br />
दीप ने उसे समझाने की कोशिश की . गीतिका तुम्हारी सहकर्मी अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ हासिल कर चुकी हैं क्योंकि कुछ लोग समझते हैं कि शादी ही इस ज़िन्दगी की आखिरी मंजिल है . ऐसे लोग नहीं चाहते कि उनके बीच कोई ऐसा भी हो जो आगे निकलना चाहे . दीप ने कहा कि ऐसे लोगों की वजह से क्यों परेशान रहती हो ? लेकिन वो भी जानता है कि ऐसे लोग ना चाहते हुए भी परेशानी का कारण बन जाते हैं . वो नहीं चाहते कि कोई उनसे आगे निकल जाए . वो खुद कुँए के मेंढक होते हैं तो ये कैसे बर्दाश्त करें कि दूसरा कुँए से बाहर निकल जाए . इसलिए उसे कुँए में रोकने के लिए वे हर संभव कोशिश करते हैं . लेकिन जो इस से बच कर निकल जाए वही इंसान होता है नहीं तो वो भी कुए का मेंढक बन के रह जाता है .<br />
मुझे कोई नहीं समझता . कोई भी नहीं . मुझे इस माहौल से छुटकारा चाहिए. गीतिका बोली .<br />
तो किसी बहाने से छुट्टी ले लो . दीप ने सब कुछ जैसे बहुत आसान समझते हुए कहा .<br />
बहुत देर में दीप गीतिका का मन बहलाने में कुछ कामयाब रहा. लेकिन इस बीच बुरा वक़्त बीत गया और भाग्य ने करवट बदली .<br />
एक खुशखबरी है . गीतिका ने चहकते हुए बताया .<br />
क्या ? दीप जैसे एक पल में सारी बात जान लेना चाहता था.<br />
हम कल चंडीगढ़ जा रहे हैं . गीतिका बोली.<br />
वाह ! क्या बात है , किस वक़त ? कितने दिन के लिए ? कौन कौन ? दीप ने सवालों की झड़ी लगा दी .वो खुश था तो कुछ बेचैन भी था . इसलिए एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में तूफ़ान की तरह उठ खड़े हुए. खुश इसलिए कि गीतिका को कुछ ताजगी मिलेगी और बेचैन इसलिए कि पता नहीं उसकी जान कितने दिन दूर रहेगी .<br />
कल . मम्मी पापा के साथ . एक -दो दिन के लिए. - गीतिका बोली.<br />
बहुत बढ़िया तुम्हारा मन बहल जाएगा . कुछ तो माहौल बदलेगा . दीप बोला. उसे दो दो ख़ुशी एक साथ मिली . एक गीतिका को कुछ दिन उस माहौल से छुट्टी मिलने की ख़ुशी और दूसरी ज्यादा दिन अपने महबूब से न बिछुड़ने की ख़ुशी .<br />
लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता जितना हम समझते हैं . दो दिन गीतिका के लिए दो पल के समान थे जो कब बीत गए पता ही नहीं चला . कहते हैं ख़ुशी के दिन भी पल के समान लगते हैं . लेकिन दीप के लिए तो दो दिन दो बरस से भी लम्बे हो गए. फ़ोन की घंटी बजते ही लगता गीतिका का ही होगा . लेकिन किसी और का नाम देखते ही वो निराशा के भंवर में डूब जाता . फिर मेसेज की घंटी बजती तो पक्का यकीन होता कि उसका मेसेज होगा. लेकिन कोई और मेसेज देखते ही उसका मन करता फ़ोन को फेंक दूं . वो बार बार फोन देखता, ऑन करता और गीतिका को ऑनलाइन न पाकर निराश हो जाता . उसे बार बार मेसेज छोड़ता कि पढेगी तो जवाब भी देगी . रोज सुबह कार्ड भेजता कि देखेगी तो मेल का जवाब आएगा . लेकिन सब बेकार . फिर भी दीप ने मेसेज छोड़ना बंद नहीं किया . उधर गीतिका मेसेज देखती , कार्ड चेक करती लेकिन जवाब देने का वक़्त नहीं मिलता था . दीप ने फिर मेसेज छोड़ा -<br />
आज पिजर गार्डन का प्रोग्राम है क्या .<br />
आज नहीं . आज घर आने का प्रोग्राम है - - - और आ भी गए .<br />
दीप ने अपनी आँखें मली क्योंकि उसे यकीन ही नहीं हुआ कि गीतिका घर पहुँच गई.<br />
एक दो सवाल जवाब के बाद उसे मेसेज पर भरोसा हुआ और उसकी जान में जान आई . अब वो सोच रहा था कि पहली सारी कहानी के बराबर तो ये एक लाइन हो गई जिसने एक पल में इतना लम्बा इंतज़ार और बैचैनी खतम कर दी . अब दीप को अहसास हुआ कि छोटी छोटी खुशियों को जीने में ही सच्चा सुख है . उसने ठान लिया कि किसी दिन गीतिका को भी ये बात समझा देगा .<br />
<br />
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Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-86995071964170070092012-07-30T07:31:00.001-07:002012-07-30T07:31:13.312-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<img goomoji="03D" src="https://mail.google.com/mail/e/03D" style="margin: 0px 0.2ex; vertical-align: middle;" /><br /><span style="background-color: #009900;">मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें
हो जाएगा , <br />तन्हाई में नगमें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जाएगा.</span><br />
<span style="background-color: #009900;"><br /></span><br />
<span style="background-color: #009900;">इसी ज़मीन पर </span><br />
<span style="background-color: #009900;"><br />न भटकेगा
मन इधर उधर और नज़रें होंगी लक्ष्य पर, <br />अपनी धुन में रम जाओगे जब इश्क तुम्हें
हो जाएगा. <br />है चहरे पर वो चमक तेरे जो दूर अँधेरा कर देगी, <br />गर राह
तुम्हें मिल जायेगी तो लक्ष्य हासिल हो जाएगा. <br />हर मुश्किल हो जाए आसां तुम हंस
कर करना यार उसे, <br />ना बोझ लगेगा फिर कुछ भी जब इश्क तुम्हें हो जाएगा . <br />गर
राह कहीं दुश्वार हुई और हिम्मत की दरकार हुई, <br />हो कहीं भले <span style="background-color: white;">प्रदीप</span> मगर फ़ौरन हाज़िर हो
जाएगा .</span><br /><img goomoji="330" src="https://mail.google.com/mail/e/330" style="margin: 0px 0.2ex; vertical-align: middle;" /><img goomoji="32B" src="https://mail.google.com/mail/e/32B" style="margin: 0px 0.2ex; vertical-align: middle;" /><img goomoji="000" src="https://mail.google.com/mail/e/000" style="margin: 0px 0.2ex; vertical-align: middle;" /><span style="color: #888888;"><br clear="all" /></span></div>Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-87717595473918070602012-06-02T10:48:00.000-07:002012-06-02T10:48:01.236-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमारे देश में जैसे अक्सर बोली और पानी बदलते हैं <br />वो इतनी जल्दी जल्दी आजकल बयानों को बदलते हैं . <br />ककहरा भी नहीं आया जिन्हें महंगाई का अब तक, <br />वो माहिर मुआशियत फिर भी बड़े तन तन के चलते हैं .<br clear="all" />
कि अब के साल बारिश खूब और महंगाई कम होगी ,<br />हुई मुद्दत उस तरकश से अब फ़क़त दो तीर चलते हैं .<br />बढ़ा कर हद से ज्यादा भाव फिर थोड़े से कम करना, <br />ये कातिल आजकल के बारहा रहम कुछ ऐसे करते हैं .<br />हुस्न वालों को पहले ही बहुत बख्शा है कुदरत ने , <br />
मगर फिर भी ना जाने क्यों वो बन ठन के चलते हैं . <br />
ना जाने कौन अब <b>प्रदीप </b>बचाएगा ये मुल्क उनसे , <br />
जो चारा, कोयला, सब कुछ चबाये बिन निगलते हैं .</div>Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-31023025547744956192011-07-25T05:11:00.000-07:002011-07-25T05:12:21.605-07:00क्या सब कुछ बदल गया ?<b>क्या सब कुछ बदल गया ? </b><br />एक अरसे बाद गाँव गया,<br />तो बहुत कुछ बदला हुआ पाया ..<br />कच्ची गलियों की जगह पक्की सड़कें ,<br />कच्चे घरों की जगह ऊंची मंजिलें .<br />कभी कीचड भरी चौड़ी गलियां<br />आज पक्की मगर कुछ तंग हो गई हैं.<br />जैसे शहर में जगह की तंगी गाँव तक पसर गई है.<br />बाब्बा राम राम , मैंने राह में बुज़ुर्ग को देखते ही कहा<br />मगर उसने पहले मुझे घूर के देखा<br />और फिर पहचान कर, राम राम लिए बिना चुपचाप बगल से गुज़र गया .<br />मैंने साथ चलते राजू से पूछा ?<br />क्या बात है , बाब्बा ने राम राम भी नहीं ली .<br />वो अबके प्रधानी के इलेक्शन में हमारे साथ नहीं थे - राजू बोला .<br />ओह , ये बात है ...<br />इलेक्शन कि कडुवाहट अब तक बाकि है ,<br />तभी राम राम भी नहीं ली .<br />सांझ के वक़्त अब लोगों की चौपाल नहीं जमती<br />पंचायतों में बढ़ते धन ने दिलों के बीच दूरी<br />ज्यादा ही बढ़ा दी है --<br />सुबह बेबे से बासी रोटी मांगी<br />तो वो बोली अभी गरम रोटी बनवाती हूँ.<br />मगर बेबे - मैं तो यहाँ बासी रोटी खाने आया हूँ<br />गुड, नोणी घी और छा के साथ .<br />नहीं बेटा, गरमा गरम रोटी खा, दूध के साथ<br />शहर में दूध नहीं धोला पानी मिलता है .<br />मैं मन मारकर रह गया, क्या करता<br />बस ! ढूध के साथ गरम रोटी धकेल ली<br />और खेतों की तरफ निकल गया .<br />राह में फिर वही अनुभव लोग कटे कटे से दिखे<br />अकसर जो बहुत प्यार से मिलते थे आज<br />जुदा जुदा खिंचे खिंचे से दिखे .<br />गाँव के मेल मिलाप को तरसता<br />अपने मन में कुढ़ता बेमन से घर लौटा .<br />रात का खाना खाकर ताऊ के घर गया<br />तो वहाँ भी बहुत कुछ बदला पाया .<br /> ढूध लोगे या चाय ताऊ ने पूछा .<br />मैंने सोचा ये क्या , पहले तो आते ही दूध मिलता था .<br />इसी सोच में मुंह से निकल गया दूध !<br />जवाब सुनते ही ताऊ चौंका !<br />क्या ? अब तक चाय पीना नहीं सीखे<br />चलो बढ़िया है शहर का रंग पूरा नहीं चढ़ा,<br />फिर क्या ताऊ ने दूध मंगवाया<br />तो मैं पीकर घर आया ,<br />आते ही बेबे बोली - कहाँ चला गया था ?<br />अब यहाँ बहुत कुछ बदल गया है<br />रात के बखत ज्यादा देर तक बाहर नहीं रहते<br />लोगों में रंजिश बहुत बढ़ गई है<br />अँधेरे में कोई कुछ भी कर सकता है<br />सुना नहीं परसों कालू को किसी ने चाक़ू घोंप दिया<br />गाँव में आना है तो संभल के आया कर<br />वरना वहीं कर खा<br />बेकार में हमारी परेशानी ना बढ़ा.<br />पता नहीं ये बेबे का डर था या गाँव की बदली हुई हवा !<br />मगर इतना तो तय है कि अब मेरे गाँव में बहुत कुछ बदल गया है<br />बहुत कुछ क्या सब कुछ बदल गया है .<br /> सब कुछ बदल गया है .Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-38479830803642818402011-04-24T08:48:00.000-07:002011-04-24T08:55:27.857-07:00तलाश !<span style="color: rgb(0, 153, 0); font-weight: bold;">तलाश</span><span style="color: rgb(0, 153, 0); font-weight: bold;"> ! </span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">जी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">हाँ</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ज़िन्दगी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">इक</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">तलाश</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ही</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">तो</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">है</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> ........</span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">तलाश</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">पहले</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">भी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">थी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">,</span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">और</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">आज</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">भी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">है</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> .....</span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">मगर</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">फ़र्क़</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">सिर्फ़</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">इतना</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">है</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">कि</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">पहले</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">मैं</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">खूबसूरती</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">में</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ज़िन्दगी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ढूंढता</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">था</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> ,</span><br /><span style="color: rgb(0, 153, 0);">और</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">अब</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ज़िन्दगी</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">में</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">खूबसूरती</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">ढूंढता</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> </span><span style="color: rgb(0, 153, 0);">हूँ</span><span style="color: rgb(0, 153, 0);"> ..........</span>Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-17415380418061182732010-11-08T06:01:00.000-08:002010-11-08T06:07:58.480-08:00दीवाली की शुभकामनाएँखुशियों की बारिश हो घर में <br />तुम्हे मिले हर जीत, <br />रोशन हो घर बार तुम्हारा <br />जले दीप से दीप, <br />धन वैभव हों साथ तुम्हारे <br />दुआ करे प्रदीप .Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-52554743479122365612010-10-19T00:07:00.000-07:002010-10-19T00:08:55.143-07:00दरख़्त- नई ग़ज़लइतना करम रहा है मेरी जान ए सख्त का,<br />चर्चा रहा सदा इसी बरबाद-ए- वक्त का।<br /><br />फूटी हैं कैसी-कैसी मुलायम सी कोंपलें<br />जज्बा तो देखिए जरा बूढ़े दरख़्त का ।<br /><br />यूं तो किए हैं काम बहुत मैंने उम्र भर, <br />ख़ाना सदा खराब रहा मेरे बख्त का ।<br /><br />अब तक किसी से भी मेरी ज्यादा न निभ सकी, <br />शायद मेरा मिजाज ही कुछ ज्यादा सख्त था।<br /><br />मतलब निकल सके जहां मीठी ज़बान से,<br />क्या काम है वहां अलफाज़-ए-सख्त का।<br /><br />आए हैं खाली हाथ तो जाना भी खाली हाथ,<br />मसरफ ही क्या है ऐसे में असबाब ओ रख़्त का।<br /><br />जिसकी भरी हो झोली तजरुबाते ज़ीस्त से,<br />मोहताज क्यों रहे वो भला ताज-ओ-तख़्त का।<br /><br />तारीफ़ बामुराद की अब क्या करे प्रदीप ,<br />देखा है जिसने खूं जिगर-ए-लख्त लख्त का।Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-72627804421755290172010-03-21T08:04:00.000-07:002010-03-21T08:09:35.630-07:00आइना<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaXjrEBpqT8TWSHSbLodrM-LkmIKNcPqGi7VAUnVtrRSrblYF6JTHl16Lo_0w8ZKdml8TckiHFyGxU6Q74DZaSCpkDaQKCBZcYTuu_FLYmIt9LHuBoBdK2sL1b_viLLcUZTN0tZYrzlXY/s1600-h/Zi9lp69.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 160px; height: 140px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaXjrEBpqT8TWSHSbLodrM-LkmIKNcPqGi7VAUnVtrRSrblYF6JTHl16Lo_0w8ZKdml8TckiHFyGxU6Q74DZaSCpkDaQKCBZcYTuu_FLYmIt9LHuBoBdK2sL1b_viLLcUZTN0tZYrzlXY/s320/Zi9lp69.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5451104427988205426" /></a><br />आइना हूं झूठ कहां भाता है मुझे, <br />जो दिखाओ वही नज़र आता है मुझे, <br />मेरी फितरत कौन बदल पाया है भला, <br />लाख तोड़ो सच ही नज़र आता है मुझे,<br />किसी को भी हाल-ए-दिल नहीं कहता , <br />हर शख्स हंसता नज़र आता है मुझे, <br />सबसे हंस हंस के जितना मिलता है, <br />वो उतना ही दुखी नज़र आता है मुझे,<br />सच वालों के रूबरू होकर प्रदीप, <br />अपना क़द अदना नज़र आता है मुझे ।Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-20104757885228812832009-08-18T07:04:00.000-07:002009-08-18T07:06:30.408-07:00यादयाद की कुछ वजह तो होती है, <br />हाय ये भी बेसबब नहीं आती ; <br />वो मेरे पास है साए की तरह , <br />मगर उससे लिपट नहीं पाती ; <br />वो भले मुझसे दूर हो लेकिन , <br />याद उसकी कहीं नहीं जाती ; <br />सितम उसके कम नहीं मुझपे, <br />पर वफ़ा भी भुला नहीं पाती ; <br />जो गुज़ारे हैं साथ दोनों ने , <br />मैं वो पल भुला नहीं पाती; <br />फिर कभी कहीं मिलें शायद, <br />खुद को यूं मिटा नहीं पाती; <br />प्रदीप तुझको कैसे समझाऊं, <br />मैं ये खुद समझ नहीं पाती;Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-90808114466114358162009-08-18T07:02:00.000-07:002009-08-18T07:04:41.532-07:00दो घड़ीहम करें क्यों किसी की निन्दा, <br />कौन जाने हों दो घड़ी जिन्दा ;<br />तुमने मुझपे किए करम इतने, <br />एक पत्थर को कर दिया जिंदा; <br />जान होते हुए भी था मुर्दा , <br />तुम मिले तो हो गया जिंदा;<br />ढल गई शाम हो लें रूखसत, <br />हम सुबह को मिलेंगे आइंदा; <br />मुझको खुश करोगी फिर हंसके, <br />देर तक कब रहा हूं आज़ुर्दा ; <br />पिंजरे से एक दिन उड़ जाएगा, <br />क़ैद कब तक रहेगा परिन्दा ;<br />सारी दुनिया को लूटकर देखो, <br />नेताजी कह रहा है दो चन्दा ; <br />महंगाई ज़ीरो तले भी जा पहुंची, <br />हमको ना कुछ दिखा कहीं मन्दा; <br />जो मिला पहले जी लें जी भरके, <br />बाद सोचेंगे क्या रहा पसमान्दा; <br />तुम मेरी जान मेरी मंजिल हो, <br />प्रदीप क्यूं भला हो शर्मिंदा ;Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-60590603568798249092009-08-10T21:30:00.000-07:002009-08-10T21:31:22.022-07:00नामहै बात अलग ये कोई क्या क्या कमाता है, <br />कोई दाम कमाता और कोई नाम कमाता है ;<br />आराम किसे नसीब है इस दुनिया में यारों, <br />कोई हंसके बिताता, कोई रोके बिताता है ; <br />हैं दर्द बहुत यूं तो हर सीने में लेकिन ,<br /> कोई खुद से छिपाता, कोई सबको बताता है ;<br />उस शख्स का तो यारों अंदाज जुदा है कुछ, <br />वो दिल की तपिश को भी आंसू से बुझाता है;<br /> कोई काम नहीं उसको ये सच है मगर लेकिन,<br /> वो सुबह का निकला, घर रात को आता है; <br />जीने की तमन्ना में हम रोज ही मरते हैं, <br />कहीं सौदा इज्ज्त का, कोई आन गवांता है;<br />बदलेंगी नहीं रोकर ये हाथों की रेखाएं , <br />अनमोल घड़ी तू फिर क्यों यूं ही गवांता है.<br />ले दे के फ़क़त मैंने बस इतना कमाया है,<br />प्रदीप अंधेरों को खुद जल के भगाता है ;Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4086435111152175971.post-32290753991301549302009-07-15T11:00:00.000-07:002009-07-15T11:03:53.909-07:00सिलसिलाघुप्प अंधेरा भगाने को क्या चाहिए , <br />एक जलता हुआ बस दिया चाहिए . <br />जो न टूटे कभी भी किसी हाल में ,<br />अब तो ऐसा कोई सिलसिला चाहिए .<br />कितनी खामोशियाँ देखो पसरी यहाँ,<br />इस जहां में कोई जलजला चाहिए .<br />हो गई है जमा अपने रिश्तों में बर्फ,<br />हमको फिर आग़ाज ऐ मुरासला चाहिए.<br />हो रही है थकन फिर भी कट जाएगा,<br />इस सफ़र को तो अब मरहला चाहिए.<br />खाली बातों से कब बदले हैं निज़ाम ,<br />बेशक उसके लिए मुक़ातला चाहिए .<br />खाली रहने से तो अब न होगी गुज़र,<br />ज़िन्दगी के लिए कोई मशग़ला चाहिए. <br />कैसा ये और बोलो है किसका निज़ाम, <br />जिसको हर हाल में मदख़ला चाहिए .<br />आदमी की वहां क्या होगी बिसात , <br />ख़ुदा से भी जहां मोजिज़ा चाहिए. <br />आपको चाहा तो क्यूं हुए हो ख़फ़ा , <br />फांसी के वास्ते तो मज़लमा चाहिए .<br />जिनको तन्हाइयों ने सताया बहुत ,<br />प्रदीप उनको कोई हमइना चाहिए .Pradeep Kumarhttp://www.blogger.com/profile/04707624643651190396noreply@blogger.com5