सदियों बाद सुनी जो मैंने प्यारी सी आवाज़ ,
दिल ने चाहा क्या क्या कहना निकली न आवाज़ ।
जबां में लर्जिश और बात में तक़ल्लुफी थी हावी ,
कुछ मत पूछो यार हमारी खामोशी का राज़ ।
और सुनाओ और सुनाओ कैसे हो तुम यार ,
इन तक सारे प्रश्न थे सिमटे सुनकर वो आवाज़ ।
उनसे बात ही तो अपना फ़ोन हो गया बंद ,
मानो रहा न कुछ भी बाकी सुनकर वो आवाज़।
शर्म से चेहरा सुर्ख और हम हक हकलाते थे ,
ऐसा था कुछ हाल हमारा सुनकर वो आवाज़।
शहद टपकता था कानों में और ज़हन था सुन्न,
ऐसा था कुछ हाल हमारा सुनकर वो आवाज़ ।
वही खनक, वही धनक और वैसा ही था साज़ ,
सदियों बाद सुनी जो मैंने दिल की वो आवाज़।
मुद्दत से जिसको सुनने को बेकल था प्रदीप,
पानी पानी आज हुआ है सुनकर वो आवाज़ .