काम जब भी नया कीजिये ,
दिल से ज़िक्र ऐ खुदा कीजिये .
उलझी लट पे उठे गर सवाल ,
फिर कुछ बहाना बना दीजिये .
गर छिड़े ज़िक्र ऐ दर्द औ ग़म ,
फिर ज़िन्दगी की हवा कीजिये .
दिल से चाहे जो उसके लिए ,
आप पलकें बिछा दीजिये .
क्या फिक्र जो हुआ ये खराब ,
काम फिर से नया कीजिये .
जाने वाले को मत टोकिए ,
हंस के उसको विदा कीजिये .
बख्श दो जो बुरा वो करे ,
पर बुराई मिटा दीजिये .
क्या हुआ जो गिरे बार बार ,
उठिए फिर हौसला कीजिये .
क्या करेंगे अँधेरे प्रदीप ,
कोई दीपक जला दीजिये .
1 comment:
Girte hain sahsawar hi maidan-e-jung mein....wo kya girenge, jo ghuntno ke bal chala karte hain....
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