इतना करम रहा है मेरी जान ए सख्त का,
चर्चा रहा सदा इसी बरबाद-ए- वक्त का।
फूटी हैं कैसी-कैसी मुलायम सी कोंपलें
जज्बा तो देखिए जरा बूढ़े दरख़्त का ।
यूं तो किए हैं काम बहुत मैंने उम्र भर,
ख़ाना सदा खराब रहा मेरे बख्त का ।
अब तक किसी से भी मेरी ज्यादा न निभ सकी,
शायद मेरा मिजाज ही कुछ ज्यादा सख्त था।
मतलब निकल सके जहां मीठी ज़बान से,
क्या काम है वहां अलफाज़-ए-सख्त का।
आए हैं खाली हाथ तो जाना भी खाली हाथ,
मसरफ ही क्या है ऐसे में असबाब ओ रख़्त का।
जिसकी भरी हो झोली तजरुबाते ज़ीस्त से,
मोहताज क्यों रहे वो भला ताज-ओ-तख़्त का।
तारीफ़ बामुराद की अब क्या करे प्रदीप ,
देखा है जिसने खूं जिगर-ए-लख्त लख्त का।
11 comments:
आए हैं खाली हाथ तो जाना भी खाली हाथ,
मसरफ ही क्या है ऐसे में असबाब ओ रख़्त का।
bahut sundar
धन्यवाद जी । इतनी जल्दी टिप्पणी भी आ गई । सचमुच इंटरनेट भी क्या तकनीक है।
बेहद खूबसूरत गज़ल्।
बहुत ही अच्छी गज़ल.
vandana ji,
bahut bahut dhanyavaad !
Blog pe aayi to thee janam din kee badhayi ke liye dhanywaad kahne,lekin blog padhne me mashgool ho gayi!
Mere dono blogs pe mai aapki follower hun,lekin pata nahi kyon ittela nahi mil rahi?
Khair ab dobara koshish karti hun!
फूटी हैं कैसी-कैसी मुलायम सी कोंपलें
जज्बा तो देखिए जरा बूढ़े दरख़्त का ।
Kya gazab gazal kahee hai aapne! Wah!
Kamal kaa likhte hain aap...lekin March ke baad ab likha? Itne din kahan gayab rahe?
shamaa ji,
hauslaa badhaane ke liye dhanyavad. ittila to milni chahiye. ho saktaa hai kaheen kuchh gadbad ho.aap comment karne ke baad email follow up comments to --- per bhi click kerke dekhiye shayad aapki samasya door ho jaaye. kya karoon kaam ki wajah se lekhan per dhayan hi nahi de paya. ab silsilaa jaari rakhne ki koshish karoonga.
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
pradeep ji bahut sunder gajal hai........
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