छोटी छोटी खुशियाँ
ज़िन्दगी में अगर किसी से प्यार या नफरत न हो तो ज़िन्दगी कितनी बेरंग और नीरस होती है . ये बात वो इन्सान बेहतर समझ सकता है जिसने कभी किसी से मोहब्बत या नफरत न की हो. सच कहें तो ज़िन्दगी एक सफ़र है और सफ़र में हमसफ़र की ज़रुरत सभी को पड़ती है क्योंकि ज़िन्दगी का लम्बा और मुश्किल सफ़र अकेले नहीं काटा जा सकता . इसलिए लोग मोहब्बत करते हैं और मोहब्बत नहीं निभती या महबूब बेवफा हो जाए तो नफरत हो जाती है. बेशक मोहब्बत और नफरत विपरीत शब्द हों लेकिन दोनों ही वक़्त आने पर इंसान के हमसफ़र बनते हैं और ज़िन्दगी का सफ़र आसान हो जाता है. मोहब्बत में इंसान एक दूसरे को जितना समझने लगें समझो मोहब्बत उतनी गहरी हो गई . दीप की ज़िन्दगी में भी जब मोहब्बत का फूल खिला तो उसे भी लगा जैसे थमी हुई ज़िन्दगी दौड़ने लगी और सफ़र कितना आसान हो गया . ऐसे में यदि कोई यह दावा करने लगे तो कुछ गलत नहीं होता -हमें अच्छी तरह मालूम है उनके भी दिल क़ी हालत,
वो जिनकी याद में हम रात भर करवट बदलते हैं .
आज दीप कुछ पीछे मुड़कर देखता है तो उसे एक एक बात याद आने लगती हैं . दीप को भटकती हुई आत्मा कहें तो गलत नहीं होगा . उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ ऐसे होता है क़ि भाग्य पर भरोसा करना ही पड़ता है . अब भला इसे आप भाग्य नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे क़ि जिस फेसबुक पेज पर उसे अपनी सबसे अच्छी दोस्त मिली वो पेज उसका नहीं था. फिर वो दोस्त कब उसकी जान बन गई पता ही नहीं चला . दरअसल हुआ यूं क़ि एक दिन दीप ने अपना मेल ओपन करने का प्रयास किया तो वो ओपन ही नहीं हुआ. बहुत कोशिश की और पासवर्ड बदला . तब कहीं मेल ओपन हुआ . अब मेल देखते ही उसके होश उड़ गए. किसी ने उसका मेल हैक कर लिया था. हैकर दीप के मेल से चैट करता था. उसने दीप के दोस्तों को चेतावनी भी दी कि अब इस मेल आई डी को भूल जाए. खैर अब , दीप चौकस हो चुका था. उसने चैट हिस्टरी चैक की. अपने सभी दोस्तों को मेल किया और बताया कि उसका मेल किसी ने हैक कर लिया था . फिर अपना नाम और कुछ निजी डिटेल बदली. इस तरह उसने पासवर्ड सेफ कर लिया.
एक दिन दीप ने मेल ओपन किया तो उसमे दोस्ती का अनुरोध था लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि अनुरोध किसी नीरज के नाम था. दीप ने फेसबुक का वो पेज खोलना चाहा तो वो खुला ही नहीं . खुलता भी कैसे पासवर्ड तो मालूम ही नहीं था क्योंकि वो फेसबुक पेज किसी और का था. बार बार क्लिक करने पर सन्देश आया कि पासवर्ड भूल गए हैं तो कुछ डिटेल दें . डिटेल देने पर नए पासवर्ड के लिए दीप के मेल में लिंक आ गया . लिंक पर जाने से वो पेज खुल गया. अब चोर दीप की आँखों के सामने था. उसने मन ही मन उसे तंग करने की ठान ली .
नए दोस्तों के अनुरोध आते तो कभी कभी दीप उस पेज को खोलने लगा . इस बीच नीरज पेज खोलने की कोशिश करता तो पासवर्ड के लिए लिंक आता . लेकिन ये चोर का दुर्भाग्य कि जब उसने दीप का मेल हैक किया हुआ था तो उसने अपना फेसबुक पेज दीप के मेल से जोड़ दिया था. बस यहीं उसने गलती कर दी थी . वो कहते हैं ना कि अपराधी कितना भी सयाना हो कोई न कोई गलती ज़रूर करता है.
इसी बीच दीप ने गीतिका को दोस्ती का अनुरोध भेजा तो उसने मंज़ूर कर लिया . कहते है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी . बात बढ़ी और गीतिका कब दीप की सबसे अच्छी दोस्त बन गई पता ही नहीं चला . फिर दोनों ने जी टाक पर बात शुरू कर दी और बात फोन तक भी जा पहुंची . दीप अक्सर उसके साथ बात करता . कभी डरता डरता फोन भी करने लगा . उसने अपना डर बताया तो गीतिका ने किसी भी वक़्त बात करने की मंज़ूरी दे दी.
गीतिका बहुत अच्छी लड़की है. मन की साफ़ और मासूम लेकिन इरादे की पक्की . वो ज़िन्दगी में कुछ बनना चाहती है. लेकिन नेट ज्यादा इस्तेमाल करने के कारण अपनी पढ़ाई पर मन नहीं लगा पाती. दीप ने उसे नेट का इस्तेमाल कम करने की सलाह दी तो वो मान भी गई . मगर दीप को आदत सी हो गई थी गीतिका को ऑंनलाइन देखने की. इसलिए उसे कभी कभी अफ़सोस होता कि उसने गीतिका को ऐसी सलाह क्यों दी ? लेकिन फिर अपना स्वार्थ छोड़ कर गीतिका के मकसद के बारे में सोचता तो यह बात ठीक लगती . अजीब उलझन थी खुद ही किसी को इलाज बताया और उसका असर भी खुद पर ही पड़ा . ये सब दोस्ती गाढ़ी होने के लक्षण थे . लेकिन दीप गीतिका को कैसे कहता कि ऑंनलाइन ज्यादा रहा करो , कि मैं हर वक़्त तुम्हे अपनी आँखों के सामने देखना चाहता हूँ . कि तुमसे खूब बाते करना चाहता हूँ . मगर कहे कैसे उसने तो खुद ही गीतिका को नेट का इस्तेमाल कम करने कि सलाह दी थी. कभी कभी खुद ही कोई लक्ष्मण रेखा खींचकर उसे लांघना कितना मुश्किल होता है ? नेट कम इस्तेमाल करने की सलाह देने वाला कैसे कहे कि ऑनलाइन रहा करो और कि मेरा मन करता है तुमसे खूब बातें करूं .
फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई . दीप को पता ही नहीं चला . दरअसल इसमें भी भाग्य ने ही साथ दिया. वरना दीप तो ज़िन्दगी भर अपनी मोहब्बत का इज़हार ना कर पाता और शायद उसकी मोहब्बत ५० प्रतिशत ही रह जाती. लेकिन भाग्य को यह मंज़ूर नहीं था. एक दिन गीतिका ने ज़िक्र छेड़ा तो बातों बातों में दीप ने अपने मन की बात बता दी. इस तरह दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई .
दीप और गीतिका की ठहरी हुई ज़िन्दगी अब दौड़ने लगी थी . एक दिन गीतिका ने बताया कि वो बहुत उदास है और अपनी मौजूदा नौकरी से तंग आ चुकी है , दोनों ने बहुत देर बात की तो पता चला कि दरअसल वो नौकरी से नहीं बल्कि अपनी सहकर्मियों से तंग आ चुकी है, वहाँ के माहौल से तंग है .
दीप ने उसे समझाने की कोशिश की . गीतिका तुम्हारी सहकर्मी अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ हासिल कर चुकी हैं क्योंकि कुछ लोग समझते हैं कि शादी ही इस ज़िन्दगी की आखिरी मंजिल है . ऐसे लोग नहीं चाहते कि उनके बीच कोई ऐसा भी हो जो आगे निकलना चाहे . दीप ने कहा कि ऐसे लोगों की वजह से क्यों परेशान रहती हो ? लेकिन वो भी जानता है कि ऐसे लोग ना चाहते हुए भी परेशानी का कारण बन जाते हैं . वो नहीं चाहते कि कोई उनसे आगे निकल जाए . वो खुद कुँए के मेंढक होते हैं तो ये कैसे बर्दाश्त करें कि दूसरा कुँए से बाहर निकल जाए . इसलिए उसे कुँए में रोकने के लिए वे हर संभव कोशिश करते हैं . लेकिन जो इस से बच कर निकल जाए वही इंसान होता है नहीं तो वो भी कुए का मेंढक बन के रह जाता है .
मुझे कोई नहीं समझता . कोई भी नहीं . मुझे इस माहौल से छुटकारा चाहिए. गीतिका बोली .
तो किसी बहाने से छुट्टी ले लो . दीप ने सब कुछ जैसे बहुत आसान समझते हुए कहा .
बहुत देर में दीप गीतिका का मन बहलाने में कुछ कामयाब रहा. लेकिन इस बीच बुरा वक़्त बीत गया और भाग्य ने करवट बदली .
एक खुशखबरी है . गीतिका ने चहकते हुए बताया .
क्या ? दीप जैसे एक पल में सारी बात जान लेना चाहता था.
हम कल चंडीगढ़ जा रहे हैं . गीतिका बोली.
वाह ! क्या बात है , किस वक़त ? कितने दिन के लिए ? कौन कौन ? दीप ने सवालों की झड़ी लगा दी .वो खुश था तो कुछ बेचैन भी था . इसलिए एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में तूफ़ान की तरह उठ खड़े हुए. खुश इसलिए कि गीतिका को कुछ ताजगी मिलेगी और बेचैन इसलिए कि पता नहीं उसकी जान कितने दिन दूर रहेगी .
कल . मम्मी पापा के साथ . एक -दो दिन के लिए. - गीतिका बोली.
बहुत बढ़िया तुम्हारा मन बहल जाएगा . कुछ तो माहौल बदलेगा . दीप बोला. उसे दो दो ख़ुशी एक साथ मिली . एक गीतिका को कुछ दिन उस माहौल से छुट्टी मिलने की ख़ुशी और दूसरी ज्यादा दिन अपने महबूब से न बिछुड़ने की ख़ुशी .
लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता जितना हम समझते हैं . दो दिन गीतिका के लिए दो पल के समान थे जो कब बीत गए पता ही नहीं चला . कहते हैं ख़ुशी के दिन भी पल के समान लगते हैं . लेकिन दीप के लिए तो दो दिन दो बरस से भी लम्बे हो गए. फ़ोन की घंटी बजते ही लगता गीतिका का ही होगा . लेकिन किसी और का नाम देखते ही वो निराशा के भंवर में डूब जाता . फिर मेसेज की घंटी बजती तो पक्का यकीन होता कि उसका मेसेज होगा. लेकिन कोई और मेसेज देखते ही उसका मन करता फ़ोन को फेंक दूं . वो बार बार फोन देखता, ऑन करता और गीतिका को ऑनलाइन न पाकर निराश हो जाता . उसे बार बार मेसेज छोड़ता कि पढेगी तो जवाब भी देगी . रोज सुबह कार्ड भेजता कि देखेगी तो मेल का जवाब आएगा . लेकिन सब बेकार . फिर भी दीप ने मेसेज छोड़ना बंद नहीं किया . उधर गीतिका मेसेज देखती , कार्ड चेक करती लेकिन जवाब देने का वक़्त नहीं मिलता था . दीप ने फिर मेसेज छोड़ा -
आज पिजर गार्डन का प्रोग्राम है क्या .
आज नहीं . आज घर आने का प्रोग्राम है - - - और आ भी गए .
दीप ने अपनी आँखें मली क्योंकि उसे यकीन ही नहीं हुआ कि गीतिका घर पहुँच गई.
एक दो सवाल जवाब के बाद उसे मेसेज पर भरोसा हुआ और उसकी जान में जान आई . अब वो सोच रहा था कि पहली सारी कहानी के बराबर तो ये एक लाइन हो गई जिसने एक पल में इतना लम्बा इंतज़ार और बैचैनी खतम कर दी . अब दीप को अहसास हुआ कि छोटी छोटी खुशियों को जीने में ही सच्चा सुख है . उसने ठान लिया कि किसी दिन गीतिका को भी ये बात समझा देगा .
3 comments:
Muddaton baad maine koyi kahanee padhee....bahut achhee lagee.
धन्यवाद् शमा जी ! क्या करुँ बहुत व्यस्त रहता हूँ . मगर उम्मीद है अब कुछ टाइम मिलेगा आपको पढने का भी और कुछ हल्का फुल्का लिखने का भी
वाह जी वाह . आपने तो मुझे भी रुला दिया . रोई आँखे मगर .... बहुत कुछ मुझे भी याद दिला गई . क्या लिखा है आपने ? दिल को छू गया. सच में कभी कभी हम ज़रा सा चूक जाते हैं . और फिर ज़िन्दगी भर पछताते रहते हैं. मुझे भी याद है कि मेरी बहन की सास यानी मेरी मावसी (सच में माँ जैसी ही बल्कि माँ से भी बढ़कर). मैं कक्षा ८ से उनके पास ही पढ़ा इसलिए माँ से जयादा उनका साथ रहा. अपने अंतिम दिनों में वो सबको याद करती थी और सब उनसे मिल लिए लेकिन नहीं जा सका तो मैं . उन दिनों बहुत व्यस्त था लेकिन इतना भी नहीं कि किसी अपने से मिलने ही ना जा सकूं. सोचा एक दो दिन ठहर जाता हूँ रविवार को चला जाऊंगा . खैर वो रविवार कभी नहीं आया. आज आपकी यादें पढ़कर मेरी भी आँखें भर आई. और यही याद रह गया कि जो मन में आये तुरंत कर लेना चाहिए वरना गया वक़्त फिर लौट के नहीं आता. जैसे आप दादाजी से माफ़ी नहीं मांग सकी मैं अपनी मावसी से आखिरी बार नहीं मिल सका.
खैर आया तो था आपको टिपण्णी के लिए धन्यवाद् देने लेकिन सोचा कुछ पढ़ भी लूं और देखिये पढ़ा क्या आपने तो रुला दिया .
अब तो अपनी यही लाइन याद आ रही हैं ----
दर्द आँखों में सिमट आया है .
जाने कौन मुझे याद आया है .
क्षमा जी आपके ब्लॉग पर भी टिपण्णी की तो वो वापस लौट आई इसलिए यहाँ भी कर रहा हूँ .
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