पहले-पहल जो उनसे मिले
तो हाल बुरा था अपना ।
पाँव न पड़ते थे धरती पर
बस हाल बुरा था अपना ।
डरते-डरते दी जब दस्तक
दरवाजे पे की थी ठक-ठक ।
फ़िर भीतर कुछ हुई थी हलचल
इधर मची थी दिल में हलचल
खट से उसने कुण्डी खोली
दिल में जैसे लगी थी गोली
बनी हकीकत हुई रूबरू
मेरी हमदम मेरी माहरू
हम जिसको समझे थे सपना
वो ख़याल बुरा था अपना
पहले -पहल जो उनसे मिले
तो हाल बुरा था अपना .
उनसे मिलने की बेताबी
मुश्किल से वो हुए थे राज़ी
सोचा था जब मिलेंगे उनसे
दिल का हाल कहेंगे उनसे
अन्दर से ही देकर पुस्तक
बाहर से कर देंगी रुखसत
लेकिन हम न टलेंगे ऐसे
हाथ पकड़ लेंगे हम झट से
ऐसे होगा वैसे होगा
वो कुछ घबराएंगे हमसे
कुछ हम शर्माएंगे उनसे
मगर हुआ न कुछ भी ऐसा
सब कुछ लगा हादसे जैसा
सचमुच में जब हुआ सामना
हाल बुरा था अपना
पहले -पहल जो उनसे मिले तो .........
बोले वो fक अन्दर आओ
दिल कहता था रुखसत पाओ
आँख नहीं उठती थी मेरी
सांस तेज़ चलती थी मेरी
पाँव नहीं बढ़ते थे आगे
माथे पे था आया पसीना
तेज़ -तेज़ धडके था सीना
डरते-डरते पाँव बढाये
कुछ शरमाये कुछ घबराए
जो कुछ भी कहना था उनसे
वैसा कुछ भी कह न पाए
प्यार नहीं था बस की बात
दिल बदन कुछ न था साथ
उस दिन की मत पूछो कुछ भी
वो काल बुरा था अपना . हाल बुरा था ......
शायद उनके दिल की हालत
जुदा नहीं थी हमसे
उखडी सी लगती थी
लेकिन खफा नहीं थी हमसे .
कहने को हम दो थे घर में
लेकिन जैसे सौ थे घर में
पास खडे थे फिर भी दूरी
कुछ न कहने की मजबूरी
दिल से दिल की थी बस बातें
वरना पसरे थे सन्नाटे !
हमको उनसे ,उनको हमसे
कहना था जाने कितना
कुछ मत पूछो खामोशी का
साल बुरा था अपना
पहले-पहल जो उनसे ...... हाल बुरा था अपना ..
फिर बोली वो करके हिम्मत
क्या पानी ले आऊं ?
हाँ ! बस मेरे मुंह से निकला
कैसे उसे छुपाऊँ ?
फिर पानी लेने ke बहाने ,
हाथ छू गया अपना
फागुन की मीठी सर्दी में
माह जेठ था अपना
जाने किसके अंदेशे में
कांप रहे थे हाथ
दिल जाते ही बदन भी अपना
छोड़ गया था साथ
सहना मुश्किल हुआ तो ,
हमने छोडा प्रेम का साथ
अच्छा घर है ! ऐसा कहकर
बदली हमने बात .
खामोशी के लब खुलते ही
प्यार कहीं काफूर हो गया
मिलने हम गए थे उनसे
वापस आये घर से मिलके
जल्दी-जल्दी रुखसत होकर
जाने कब हम आये बाहर
होश पड़े तो हमने जाना
टूट गया है सपना .
पहले-पहल जो उनसे मिले तो
हाल बुरा था अपना .. हाल बुरा था अपना ..
lock2.bmp (image)
Friday, February 29, 2008
Tuesday, February 26, 2008
जाने वो कौन सी दुनिया में बैठे हैं ,
रूबरू मेरे मगर और कहीं बैठे हैं ।
जाने किसलिए बुत वो बने बैठे हैं ,
कुछ तो है जो तने बैठे हैं ।
उठ रहे हैं दिल में तूफ़ान कई ,
रूबरू मेरे शांत भले बैठे हैं ।
कुछ तो आएगा सारे सवालों का जवाब ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
कुछ तो है जो उनके होटों पे लरजना चाहे ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
एक मुद्दत से दिल जलाकर प्रदीप
हम भी हाले दिल सुनने के लिए बैठे हैं .
रूबरू मेरे मगर और कहीं बैठे हैं ।
जाने किसलिए बुत वो बने बैठे हैं ,
कुछ तो है जो तने बैठे हैं ।
उठ रहे हैं दिल में तूफ़ान कई ,
रूबरू मेरे शांत भले बैठे हैं ।
कुछ तो आएगा सारे सवालों का जवाब ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
कुछ तो है जो उनके होटों पे लरजना चाहे ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
एक मुद्दत से दिल जलाकर प्रदीप
हम भी हाले दिल सुनने के लिए बैठे हैं .
नए दोस्त के लिए
jआने वो कौन सी दुनिया में बैठे हैं ,
रूबरू मेरे मगर और कहीं बैठे हैं .
जाने किसलिए बुत वो बने बैठे हैं ,
कुछ तो है जो इतने ताने बैठे हैं ।
उठ रहे हैं दिल में तूफ़ान कई ,
रूबरू मेरे शांत भले बैठे हैं ।
कुछ तो आएगा सारे सवालों का जवाब ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
कुछ तो है जो उनके होटों पे लरजना चाहे ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
एक मुद्दत से दिल जलाकर प्रदीप
हम भी हाले दिल सुनने के लिए बैठे हैं .
रूबरू मेरे मगर और कहीं बैठे हैं .
जाने किसलिए बुत वो बने बैठे हैं ,
कुछ तो है जो इतने ताने बैठे हैं ।
उठ रहे हैं दिल में तूफ़ान कई ,
रूबरू मेरे शांत भले बैठे हैं ।
कुछ तो आएगा सारे सवालों का जवाब ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
कुछ तो है जो उनके होटों पे लरजना चाहे ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
एक मुद्दत से दिल जलाकर प्रदीप
हम भी हाले दिल सुनने के लिए बैठे हैं .
Saturday, February 23, 2008
haale dil
रस्मन हँसी के पीछे कुछ छुपा ज़रूर है ,
तेरे भी दिल में शूल सा कुछ चुभा ज़रूर है .
दुनिया में गम-ओ-मसर्रत रहते हैं साथ साथ ,
खट्टा है कुछ यहाँ तो मीठा ज़रूर है .
देता है कौन साथ दुनिया में उम्र भर ,
मिलता है कोई गर तो बिछ्ड़ता ज़रूर है .
घर में कई दिनों से पसरा हुआ सुकून ,
कुछ न कुछ तो रिश्तों में टूटा ज़रूर है.
जाते हुए सफर में मुड़कर भी देख लो ,
सामान कुछ न कुछ तो छूटा ज़रूर है .
क्या फर्क जो मय के प्याले नहीं पिए ,
आँखों से पीने पे नशा चढ़ता ज़रूर है .
माना बहुत जहान में तंग रहा प्रदीप ,
कोई न कोई तुझसे भी रूठा ज़रूर है .
तेरे भी दिल में शूल सा कुछ चुभा ज़रूर है .
दुनिया में गम-ओ-मसर्रत रहते हैं साथ साथ ,
खट्टा है कुछ यहाँ तो मीठा ज़रूर है .
देता है कौन साथ दुनिया में उम्र भर ,
मिलता है कोई गर तो बिछ्ड़ता ज़रूर है .
घर में कई दिनों से पसरा हुआ सुकून ,
कुछ न कुछ तो रिश्तों में टूटा ज़रूर है.
जाते हुए सफर में मुड़कर भी देख लो ,
सामान कुछ न कुछ तो छूटा ज़रूर है .
क्या फर्क जो मय के प्याले नहीं पिए ,
आँखों से पीने पे नशा चढ़ता ज़रूर है .
माना बहुत जहान में तंग रहा प्रदीप ,
कोई न कोई तुझसे भी रूठा ज़रूर है .
2 shair
दर्द भरा है जितना दिल में उतनी ही है प्रेम कहानी,
उनके चर्चे जब होते हैं बहता है आँखों से पानी .
सबकी सुनकर अपनी करना नाम इसी का बुद्धिमानी,
क्यों इसकी परवाह करें ये दुनिया तो है इक दीवानी .
दुनिया यारों है दीवानी ............
उनके चर्चे जब होते हैं बहता है आँखों से पानी .
सबकी सुनकर अपनी करना नाम इसी का बुद्धिमानी,
क्यों इसकी परवाह करें ये दुनिया तो है इक दीवानी .
दुनिया यारों है दीवानी ............
dost
स्याह रात में जो बन के शमां जलती है ,
वो हादसों में भी मेरे साथ साथ चलती है .
वो मेरी दोस्त hamnazar हमसफ़र हमदम ,
उसे ही देखकर ये दिल की सांस चलती है .
वो हादसों में भी मेरे साथ साथ चलती है .
वो मेरी दोस्त hamnazar हमसफ़र हमदम ,
उसे ही देखकर ये दिल की सांस चलती है .
Friday, February 22, 2008
tum hoti to aisaa hota ....
तुम होती तो ..................
तुम होती तो ऐसा होता , पास कोई तुम जैसा होता,
रात भी होती मेरी रात सी ,दिन मेरा दिन जैसा होता .
तुम होती तो ..................
तेरे बिन दिल सूना सूना , ज्यों बच्चे बिन कोई खिलौना ,
कुछ तो जग में अपना होता, घर मेरा घर जैसा होता .
तुम होती तो ...
सब ना मुझे दीवाना कहते ,पगला ना मस्ताना कहते ,
तेरे ख़्याल में डूबा रहता , याद में तेरी खोया होता .
तुम होती तो ..............
खामोशी ना मुझको खलती , तन्हाई ना मुझको डस्ती,
परछाई की भांति हर पल साथ तुम्हे मैं अपने रखता .
तुम होती तो ......
दिन भर काम मैं खोया रहता ,तन मन थकन से टूटा रहता ,
सांझ ढले जब घर मैं आता , तुझे देखकर चेहरा खिलता .
तुम होती तो ............
.
तुम होती तो ऐसा होता , पास कोई तुम जैसा होता,
रात भी होती मेरी रात सी ,दिन मेरा दिन जैसा होता .
तुम होती तो ..................
तेरे बिन दिल सूना सूना , ज्यों बच्चे बिन कोई खिलौना ,
कुछ तो जग में अपना होता, घर मेरा घर जैसा होता .
तुम होती तो ...
सब ना मुझे दीवाना कहते ,पगला ना मस्ताना कहते ,
तेरे ख़्याल में डूबा रहता , याद में तेरी खोया होता .
तुम होती तो ..............
खामोशी ना मुझको खलती , तन्हाई ना मुझको डस्ती,
परछाई की भांति हर पल साथ तुम्हे मैं अपने रखता .
तुम होती तो ......
दिन भर काम मैं खोया रहता ,तन मन थकन से टूटा रहता ,
सांझ ढले जब घर मैं आता , तुझे देखकर चेहरा खिलता .
तुम होती तो ............
.
2 shair
चाँद लम्हों के लिए हमसे रिश्ता जोड़कर ,
जा रहे हैं अब वो देखो हमसे नाता तोड़कर .
उम्र भर तक साथ देने का किया वादा मगर ,
इक जरा सी बात पर जा रहे हैं छोड़कर .
जा रहे हैं अब वो देखो हमसे नाता तोड़कर .
उम्र भर तक साथ देने का किया वादा मगर ,
इक जरा सी बात पर जा रहे हैं छोड़कर .
2 ghazal
1-
मैं जिस मकान मैं रहता हूँ उसे घर नहीं कहते ,
ईंट पत्थर की दीवारों को कभी घर नहीं कहते .
चाँद रिश्तों को निभाने के लिए लाजिम हैं दो चार शख्स ,
बिन रिश्तों के मकान को कभी घर नहीं कहते .
ईंट पत्थर के बियांबान जंगल हैं हमारे ये शहर ,
मकान काफी हैं यहाँ लेकिन कहीं घर नहीं रहते .
हो सकता है कि आखिर के सिवा आगाज़ हो ये ,
हलके से धुंधलके को सदा सहर नहीं कहते .
2-
चुपके चुपके सबसे छुपके कोई मुझसे कहता है,
मुश्किल में तू दिल की सुनना कोई मुझसे कहता है.
भूल ना जाना सारे रिश्ते , बेरिश्तों के जंगल में ,
दिल का रिश्ता सबसे प्यारा कोई मुझसे कहता है .
मैं जिस मकान मैं रहता हूँ उसे घर नहीं कहते ,
ईंट पत्थर की दीवारों को कभी घर नहीं कहते .
चाँद रिश्तों को निभाने के लिए लाजिम हैं दो चार शख्स ,
बिन रिश्तों के मकान को कभी घर नहीं कहते .
ईंट पत्थर के बियांबान जंगल हैं हमारे ये शहर ,
मकान काफी हैं यहाँ लेकिन कहीं घर नहीं रहते .
हो सकता है कि आखिर के सिवा आगाज़ हो ये ,
हलके से धुंधलके को सदा सहर नहीं कहते .
2-
चुपके चुपके सबसे छुपके कोई मुझसे कहता है,
मुश्किल में तू दिल की सुनना कोई मुझसे कहता है.
भूल ना जाना सारे रिश्ते , बेरिश्तों के जंगल में ,
दिल का रिश्ता सबसे प्यारा कोई मुझसे कहता है .
vivah yaani shadi
विवाह !
समझौता, तकलीफ, तनाव , तशनगी.
तंगदिली, तंगहाली ,झंझट
और ज़िम्मेदारी की खिचडी का
नाम -विवाह है !
ये वो शमा है,
जिस पर हर मर्द ,
भँवरे की भांति
स्वाह है !
समझौता, तकलीफ, तनाव , तशनगी.
तंगदिली, तंगहाली ,झंझट
और ज़िम्मेदारी की खिचडी का
नाम -विवाह है !
ये वो शमा है,
जिस पर हर मर्द ,
भँवरे की भांति
स्वाह है !
new gazal
अब के बहार ऐसे कई काम कर गई ,
इल्जाम झूठे देके बदनाम कर गई .
तेरा कोई कसूर है न मेरा कोई कसूर ,
दोनों की गलतफ़हमी अपना काम कर गई .
उनको किसी कदर भी समझा नहीं सका ,
मेरी नादानी मुझे नाकाम कर गई /
इल्जाम झूठे देके बदनाम कर गई .
तेरा कोई कसूर है न मेरा कोई कसूर ,
दोनों की गलतफ़हमी अपना काम कर गई .
उनको किसी कदर भी समझा नहीं सका ,
मेरी नादानी मुझे नाकाम कर गई /
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