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Friday, February 22, 2008

2 ghazal

1-
मैं जिस मकान मैं रहता हूँ उसे घर नहीं कहते ,
ईंट पत्थर की दीवारों को कभी घर नहीं कहते .
चाँद रिश्तों को निभाने के लिए लाजिम हैं दो चार शख्स ,
बिन रिश्तों के मकान को कभी घर नहीं कहते .
ईंट पत्थर के बियांबान जंगल हैं हमारे ये शहर ,
मकान काफी हैं यहाँ लेकिन कहीं घर नहीं रहते .
हो सकता है कि आखिर के सिवा आगाज़ हो ये ,
हलके से धुंधलके को सदा सहर नहीं कहते .
2-
चुपके चुपके सबसे छुपके कोई मुझसे कहता है,
मुश्किल में तू दिल की सुनना कोई मुझसे कहता है.
भूल ना जाना सारे रिश्ते , बेरिश्तों के जंगल में ,
दिल का रिश्ता सबसे प्यारा कोई मुझसे कहता है .

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