रस्मन हँसी के पीछे कुछ छुपा ज़रूर है ,
तेरे भी दिल में शूल सा कुछ चुभा ज़रूर है .
दुनिया में गम-ओ-मसर्रत रहते हैं साथ साथ ,
खट्टा है कुछ यहाँ तो मीठा ज़रूर है .
देता है कौन साथ दुनिया में उम्र भर ,
मिलता है कोई गर तो बिछ्ड़ता ज़रूर है .
घर में कई दिनों से पसरा हुआ सुकून ,
कुछ न कुछ तो रिश्तों में टूटा ज़रूर है.
जाते हुए सफर में मुड़कर भी देख लो ,
सामान कुछ न कुछ तो छूटा ज़रूर है .
क्या फर्क जो मय के प्याले नहीं पिए ,
आँखों से पीने पे नशा चढ़ता ज़रूर है .
माना बहुत जहान में तंग रहा प्रदीप ,
कोई न कोई तुझसे भी रूठा ज़रूर है .
2 comments:
अरे आप शीर्षक हिन्दी में न लिख अपनी सुंदर रचना हिन्दी प्रेमियों से दूर कर रहे हैं।
mashware ke liye dhanyawad ! aainda khayal rakhoonga . kya aap apna parichay nahi denge ?
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