याद की कुछ वजह तो होती है,
हाय ये भी बेसबब नहीं आती ;
वो मेरे पास है साए की तरह ,
मगर उससे लिपट नहीं पाती ;
वो भले मुझसे दूर हो लेकिन ,
याद उसकी कहीं नहीं जाती ;
सितम उसके कम नहीं मुझपे,
पर वफ़ा भी भुला नहीं पाती ;
जो गुज़ारे हैं साथ दोनों ने ,
मैं वो पल भुला नहीं पाती;
फिर कभी कहीं मिलें शायद,
खुद को यूं मिटा नहीं पाती;
प्रदीप तुझको कैसे समझाऊं,
मैं ये खुद समझ नहीं पाती;
11 comments:
बहुत आचे पर्दीप..याद होती ही खुबसूरत है..याद करने वाला उसे और सजा देता है...योंही लिखते रहिये..
चाँद
प्रदीप जी ,जय हिंद
आपने याद को बहुत विस्तृत परिभाषा दी है ,साधुवाद
आपने अपनी बिटिया की एक बीमारी का जिक्र मुझसे किया था ,फिर शायद आप भूल गये अगर अच्छी हो गयी हो तो मेरी शुभकामनाएं
आपकी, ' कहानी 'ब्लॉग पे टिप्पणी के लिए तहे दिलसे शुक्र गुज़ार हूँ ॥! इस बहने आपका ब्लॉग खोला ! और फिर पता नही कितनी देर पढ़ती रही ..
क्या कहने इस रचना के....! यादों पे किसका बस चला ..ये तो हमें बेबस बना देती हैं !
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bahut khub likha hai app ne.....
Pradeep ji bahut accha likhha hai aap ne yaad per per kiski yaad aati hai vo bhi likha dete-aapka jeetu
बहुत सुन्दर पोस्ट
बहुत बहुत आभार.........
बहुत सुन्दर पोस्ट
बहुत बहुत आभार.........
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बहुत बहुत आभार.........
Nayi rachanaki khojme puhunch gayi aapke blogpe!Aur purani baar,baar padhati rahi!
aap ne koe new poem nahi post ke...ager likhe ho to post karna ..thanq so much..or pari kaise hai.....
Shama ji ,
bahut din baad kuchh likhaa hai post kar diya hai . aapki beshqeemati tippani ka intezar rahega ..
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