तुम्हारे बिन हमारा घर,
हमारा घर नहीं लगता .
ईंट पत्थर का ये खंडहर,
हमारा घर नहीं लगता .
तेरे होने से होते थे ,
हमारे रात दिन रंगीन .
तेरी खुशियों में शामिल थे ,
तेरे ग़म में थे हम ग़मगीन .
मगर अब तो हमारा ग़म ,
हमारा ग़म नहीं लगता .
तुम्हारे बिन हमारा घर ............
बिगड़ना तुम पे आते ही ,
झगड़ना तुम से आते ही .
वो बेमतलब की बातों पर ,
बिगड़ना तुम पे आते ही .
मगर अब वक़्त ये कैसा ?
हमारा क्यों नहीं लगता ?
तुम्हारे बिन हमारा घर ..........................
वही हरियाली है बाहर ,
वही हैं पेड़ और पत्ते .
वही सब घर के अन्दर हैं
वहीं हैं कपडे और लत्ते .
मगर अब अपना बिस्तर भी ,
हमारा क्यों नहीं लगता ?
तुम्हारे बिन हमारा घर ......................
हवाएं अब भी चलती हैं ,
घटाएं अब भी घिरती हैं .
ये पंछी सांझ और तड़के ,
वो नग्मे अब भी गाते हैं.
मगर माहौल ये सारा ,
हमारा क्यों नहीं लगता ?
तुम्हारे बिन .......................................
कभी हम थके मांदे से ,
सभी दिन भर के कामों से .
निबटकर दौड़े-दौड़े से ,
जब अपने घर को आते थे .
सुकूं का वो इशारा अब ,
न जाने क्यों नहीं मिलता ?
तुम्हारे बिन .........................
तुम्हारे काम में हर पल ,
कमी हम ढूंढा करते थे .
तुम्हारे साथ लड़ने के ,
बहाने ढूंढा करते थे .
बहाने हैं बहुत से अब ,
तुम्हारा संग नहीं मिलता .
तुम्हारे बिन ...........................
तुम्हारी बेवकूफी को बताना ,
सबको हंस हंस कर .
ज़रा सी बात को भी ,
बढ़ाना खुश हो होकर .
कहाँ वो गुम हुआ जाकर ?
ज़माना क्यों नहीं मिलाता ?
तुम्हारे बिन ......................
वो पहले तो ज़रा सी
बात पे तुम को रुला देना .
ज़रा सी बात पे लेकिन ,
वो तुमको फिर हंसा देना .
वो मौसम प्यार वाला ,
फिर हमारा क्यों नहीं मिलता ?
तुम्हारे बिन ..............
किसी का नाम ले लेकर ,
चिढाना अपनी जाना को .
वो अपनी हरकतों से फिर ,
लजाना अपनी जाना को .
वो ही मौसम पुराना ,
फिर हमारा क्यों नहीं मिलता ?
तुम्हारे बिन ..................................
झगड़ कर के ज़रा सी बात पे ,
वो घर के टुकड़े कर देना .
वो हिस्सा तेरा ,ये है मेरा
बस तेरा ये कह देना .
मगर ये पूरा घर भी अब ,
हमारा क्यों नहीं लगता ?
तुम्हारे बिन हमारा घर
हमारा घर नहीं लगता !
lock2.bmp (image)
Sunday, May 31, 2009
जीवन
अगर ज़िन्दगी में कोई ग़म नहीं है ,
तो ख़ुशी ही ख़ुशी भी जीवन नहीं है.
मैं इंसान उसको भला कैसे कह दूं
किसी के लिए आँख गर नम नहीं है.
ग़म के बिना कोई जन्नत भले हो.
वो जीवन नहीं है वो जीवन नहीं है .
बेशक मोहब्बत है अहसास दिल का,
न होगा जहां कोई धड़कन नहीं है .
कहाँ तक छुपायेगा इंसान खुद को ,
जो फितरत छुपा ले वो दर्पण नहीं है .
उठो एक कोशिश तो फिर करके देखो,
न हल हो कोई ऐसी उलझन नहीं है.
जो अपनों ने मुझको दिए अपने बनकर ,
उन ज़ख्मों को भर दे वो मरहम नहीं है .
कहाँ तक ज़माने के कांटे बटोरूँ ,
जो सब को छुपा ले वो दामन नहीं है.
ग़म-औ- ख़ुशी का संगम है दुनिया ,
कोई गर न हो तो ये जीवन नहीं है.
दिल की तमन्ना बयाँ कर ही डालो,
सुनके न पिघले वो नशेमन नहीं है .
मोहब्बत है गर बयाँ भी वो होगी ,
ये दिल में छुपाने से छुपती नहीं है.
बहुत बातें मुझको करनी हैं तुमसे ,
कि एक बार मिलना काफी नहीं है .
अँधेरा बढ़ा तो फिर है हाज़िर प्रदीप .
जो रोशन न हो ऐसा गुलशन नहीं है .
तो ख़ुशी ही ख़ुशी भी जीवन नहीं है.
मैं इंसान उसको भला कैसे कह दूं
किसी के लिए आँख गर नम नहीं है.
ग़म के बिना कोई जन्नत भले हो.
वो जीवन नहीं है वो जीवन नहीं है .
बेशक मोहब्बत है अहसास दिल का,
न होगा जहां कोई धड़कन नहीं है .
कहाँ तक छुपायेगा इंसान खुद को ,
जो फितरत छुपा ले वो दर्पण नहीं है .
उठो एक कोशिश तो फिर करके देखो,
न हल हो कोई ऐसी उलझन नहीं है.
जो अपनों ने मुझको दिए अपने बनकर ,
उन ज़ख्मों को भर दे वो मरहम नहीं है .
कहाँ तक ज़माने के कांटे बटोरूँ ,
जो सब को छुपा ले वो दामन नहीं है.
ग़म-औ- ख़ुशी का संगम है दुनिया ,
कोई गर न हो तो ये जीवन नहीं है.
दिल की तमन्ना बयाँ कर ही डालो,
सुनके न पिघले वो नशेमन नहीं है .
मोहब्बत है गर बयाँ भी वो होगी ,
ये दिल में छुपाने से छुपती नहीं है.
बहुत बातें मुझको करनी हैं तुमसे ,
कि एक बार मिलना काफी नहीं है .
अँधेरा बढ़ा तो फिर है हाज़िर प्रदीप .
जो रोशन न हो ऐसा गुलशन नहीं है .
Saturday, May 30, 2009
तेरी याद में
जिए जा रहा हूँ तेरी याद में ,
बहला रहा दिल तेरी याद में .
जो गुज़रे हैं पल कभी संग तेरे ,
गिने जा रहा हूँ तेरी याद में .
सुहाना सफ़र वो नहीं भूल पाता,
चला जा रहा जो तेरी याद में .
जां से है प्यारा वो जीवन का ,
पल, जो मैंने जिया है तेरी याद में .
बहुत खूबसूरत शमां है यहाँ, पर;
उससे भी बेहतर, जो तेरी याद में.
बहुत नाज़नीन मैंने देखी यहाँ ,
धड़कता है दिल ये तेरी याद में.
हम छोड़ आये पीछे जो पल,
मचलता है जी क्यों तेरी याद में.
मेरा शेर बेहतर वही है प्रदीप ,
लिखा जा रहा जो तेरी याद में .
बहला रहा दिल तेरी याद में .
जो गुज़रे हैं पल कभी संग तेरे ,
गिने जा रहा हूँ तेरी याद में .
सुहाना सफ़र वो नहीं भूल पाता,
चला जा रहा जो तेरी याद में .
जां से है प्यारा वो जीवन का ,
पल, जो मैंने जिया है तेरी याद में .
बहुत खूबसूरत शमां है यहाँ, पर;
उससे भी बेहतर, जो तेरी याद में.
बहुत नाज़नीन मैंने देखी यहाँ ,
धड़कता है दिल ये तेरी याद में.
हम छोड़ आये पीछे जो पल,
मचलता है जी क्यों तेरी याद में.
मेरा शेर बेहतर वही है प्रदीप ,
लिखा जा रहा जो तेरी याद में .
Friday, May 29, 2009
आते जाते
मोहब्बत में ऐसे समय आते जाते ,
ज़माने गुज़रते ख़बर आते जाते .
है इंतज़ार अब भी यूं ही सलामत ,
गुजरा ज़माना ख़बर आते आते .
खुली आँख मेरी, है वक़्त-ऐ-आखिर,
कि वो आती होगी ख़बर आते आते .
इंतज़ार के बिन जीना था मुश्किल,
हमेशा अगर वो मेरे आगे होते .
मनाते रहे वो ज़माने को सारे,
मज़ा आता गर वो हमको मनाते.
गले से लगाकर बेशक मनाते ,
पहले हम उनको जी भर सताते .
मोहब्बत का उनको अहसास होता
प्रदीप की वो अगर सुनने आते .
ज़माने गुज़रते ख़बर आते जाते .
है इंतज़ार अब भी यूं ही सलामत ,
गुजरा ज़माना ख़बर आते आते .
खुली आँख मेरी, है वक़्त-ऐ-आखिर,
कि वो आती होगी ख़बर आते आते .
इंतज़ार के बिन जीना था मुश्किल,
हमेशा अगर वो मेरे आगे होते .
मनाते रहे वो ज़माने को सारे,
मज़ा आता गर वो हमको मनाते.
गले से लगाकर बेशक मनाते ,
पहले हम उनको जी भर सताते .
मोहब्बत का उनको अहसास होता
प्रदीप की वो अगर सुनने आते .
रेहाना चाँद जी के परिचय के जवाब में
हम कहते हैं एक नई शहर उसको ,
आप कहती हैं गुमशुदा डगर जिसको.
एक दास्तान -ऐ- ज़िन्दगी है वो,
आप कहती हैं फ़क़त मुख्तसर जिसको .
मुसलसल बहती एक नदी है वो,
आप कहती हैं गुमशुदा नहर जिसको.
खुदा और दोस्तों का है करम बेशक,
लोग कहते हैं आपकी ज़बर उसको .
खुदा करे अविरल यूं ही बहती रहे ,
आप कहती हैं फ़क़त नहर जिसको .
आपके दिल से जो पीर निकली है,
लोग कहते हैं आपकी नज़म उसको .
आपकी आला कलम से जो निकला है ,
प्रदीप झुकाता है अपना सर उसको .
आप कहती हैं गुमशुदा डगर जिसको.
एक दास्तान -ऐ- ज़िन्दगी है वो,
आप कहती हैं फ़क़त मुख्तसर जिसको .
मुसलसल बहती एक नदी है वो,
आप कहती हैं गुमशुदा नहर जिसको.
खुदा और दोस्तों का है करम बेशक,
लोग कहते हैं आपकी ज़बर उसको .
खुदा करे अविरल यूं ही बहती रहे ,
आप कहती हैं फ़क़त नहर जिसको .
आपके दिल से जो पीर निकली है,
लोग कहते हैं आपकी नज़म उसको .
आपकी आला कलम से जो निकला है ,
प्रदीप झुकाता है अपना सर उसको .
Friday, May 15, 2009
आप और हम
रूबरू आप जब नहीं होते,
उस घड़ी हम भी हम नहीं होते .
कुछ तो वजह होगी ज़रूर,
लब यूं ही बंद नहीं होते .
हौसला गर न हो दिल में ,
तो इरादे बुलंद नहीं होते .
कुर्बत के बाद भी,दिल मिले;
बिन फासले कम नहीं होते.
फूल गर खूबसूरत होता है ,
चाहने वाले भी कम नहीं होते .
जज्बातों को उभरने दो कि ये,
इस तरह से कम नहीं होते .
क्या हुआ गर घना अँधेरा है,
प्रदीप यूं चिराग मद्धम नहीं होते .
उस घड़ी हम भी हम नहीं होते .
कुछ तो वजह होगी ज़रूर,
लब यूं ही बंद नहीं होते .
हौसला गर न हो दिल में ,
तो इरादे बुलंद नहीं होते .
कुर्बत के बाद भी,दिल मिले;
बिन फासले कम नहीं होते.
फूल गर खूबसूरत होता है ,
चाहने वाले भी कम नहीं होते .
जज्बातों को उभरने दो कि ये,
इस तरह से कम नहीं होते .
क्या हुआ गर घना अँधेरा है,
प्रदीप यूं चिराग मद्धम नहीं होते .
Thursday, May 14, 2009
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी
बिन तुम्हारे क्या चलेगा आजकल,
थम गई है ज़िन्दगी भी आजकल.
आँखों से दरिया बहा करते हैं पर,
सांस मेरी थम गई है आजकल.
मिलने जुलने में भी होता मोलभाव,
ये तिज़ारत हो गई है आजकल .
बस्तियां सब बन गई हैं मंडियां ,
हर तरफ है कारोबार आजकल .
जी में आता है ये दुनिया छोड़ दूं ,
पर मौत भी महँगी हुई है आजकल.
बिन तुम्हारे सूना सूना है जहां,
भीड़ भी तन्हाई लगती आजकल.
जाते जाते जान भी तुम ले गए,
ज़िन्दगी बेजान है ये आजकल.
उम्र भर रौशन रहेगा ये प्रदीप,
हों भले कितने अँधेरे आजकल.
थम गई है ज़िन्दगी भी आजकल.
आँखों से दरिया बहा करते हैं पर,
सांस मेरी थम गई है आजकल.
मिलने जुलने में भी होता मोलभाव,
ये तिज़ारत हो गई है आजकल .
बस्तियां सब बन गई हैं मंडियां ,
हर तरफ है कारोबार आजकल .
जी में आता है ये दुनिया छोड़ दूं ,
पर मौत भी महँगी हुई है आजकल.
बिन तुम्हारे सूना सूना है जहां,
भीड़ भी तन्हाई लगती आजकल.
जाते जाते जान भी तुम ले गए,
ज़िन्दगी बेजान है ये आजकल.
उम्र भर रौशन रहेगा ये प्रदीप,
हों भले कितने अँधेरे आजकल.
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