मोहब्बत में ऐसे समय आते जाते ,
ज़माने गुज़रते ख़बर आते जाते .
है इंतज़ार अब भी यूं ही सलामत ,
गुजरा ज़माना ख़बर आते आते .
खुली आँख मेरी, है वक़्त-ऐ-आखिर,
कि वो आती होगी ख़बर आते आते .
इंतज़ार के बिन जीना था मुश्किल,
हमेशा अगर वो मेरे आगे होते .
मनाते रहे वो ज़माने को सारे,
मज़ा आता गर वो हमको मनाते.
गले से लगाकर बेशक मनाते ,
पहले हम उनको जी भर सताते .
मोहब्बत का उनको अहसास होता
प्रदीप की वो अगर सुनने आते .
2 comments:
इस रचनाके लिए किन अल्फाज़ोंका प्रयोग करूँ? हरेक पंक्ती दोहराई जा सकती है...हाँ..ऐसेभी ज़माने आते जाते रहे...बस..और क्या कहूँ?
शायद आपको, http//aajtak yahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.कॉम इस ब्लोग्मे दिलचस्पी हो, इसलिए लिंक दे रही हूँ...लेकिन, ब्लॉग एकबार खोलके तसल्ली कर लूँ,कि, सही URL है या नहीं...
com hona chahiye...URL likhneme use Roman script me karna bhool gayi..kshama chahti hun!
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