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Thursday, September 22, 2016

तुम्हारे जन्मदिन पर 🌹🌹🌹🌹

तुम्हारे  जन्मदिन पर
🌹🌹🌹🌹
जो हो सकता ,
तो  चमन से  फूल  सारे
लेकर गुलदस्ता  बनाता
और जन्मदिन  विश करने
तुम्हारे  घर  मैं  खुद  आता !
जो  हो सकता
तो  गगन के सब सितारों
 को , हथेली  में  सजाकर
हर अंधेरे  को  रोशन  करने
तुम्हारे  घर  मैं  खुद  आता!
जो  हो सकता
तो जमाने  भर की  खुशियां
समेट कर मैं  खुद  उन्हें
लेकर  पूरे  जतन  के  साथ
तुम्हारे  घर  तक पहुंचाता  !

मगर  यह  हो न सका
न चमन ने  ही सब फूल  दिए
न गगन  ने सब सितारे  दिए
इसलिए  ऐ  दोस्त,  दिल  से
यही  दुआ है  कि  तुम सदा
फूल  सी महकती  रहो ,
सितारों  सी चमकती  रहो
ज़िंदगी में  कोई  गम न हो
साल  दर साल  उम्र  भर
चिड़ियों  सी चहकती  रहो . . .


Friday, September 16, 2016

मैं खुश हूँ आज भी

.....
 मैं  खुश  हूँ  आज  भी
.......
खुश तो  हूँ  मैं  आज भी
यकीनन  !
क्योंकि  दुखी  होता  तो
वक्त  ठहर गया  होता ,
लेकिन इसे  तो जैसे
पंख लगे हैं,   आज भी
ये सरपट  दौड़ रहा है . .
कब  दिन  निकलता है ,
कब रात  होती है ,
पता ही नहीं  चलता !
ठीक  वैसे ही जैसे -
स्कूल  से  आते ही
बस्ता पटक कर निकल  जाना
और  कंचे व काई -डंडा
खेलते  -खेलते
कब सांझ हो गई !
पता ही नहीं  चलता  था ।
ठीक  वैसे ही जैसे  -
शाम को  घर  आते ही,
छुपम -छुपाई  तो कभी,
पकड़म-पकड़ा खेलते- खेलते
कब रात  हो गई !
पता ही नहीं  चलता  था ।
ठीक वैसे ही  जैसे  -
इंटर कॉलेज  से लौटते समय
जमौए खाते - खाते
या आम खाते- खाते
कब दोपहर  ढल  गई !
पता ही नहीं  चलता  था  ।
ठीक  वैसे ही जैसे  -
काॅलेज  जाने के लिए
बस  में  बैठे  दूर से ही ,
उसे निहारते  -निहारते
कब स्टाॅप आ गया !
पता ही नहीं  चलता  था  ।
ठीक  वैसे ही जैसे  -
फिजिक्स  की नीरस क्लास में
देखते  रहते थे  एक कोने में
कि  इक बार तो देखेगी !
इस आस में,
पीरियड  कैसे  बीत  जाता था !
पता  ही नहीं  चलता  था  ।
ठीक  वैसे ही जैसे  -
गांव की  गली  में  खड़े - खड़े
उसकी सिर्फ एक  झलक
देखने के लिए,
पहर कैसे  बीत  जाती थी !
पता  ही नहीं  चलता  था ।
ठीक  वैसे ही जैसे -
खेत में काम करते हुए
पड़ोस में गेहूं  काटती  लड़की
को देखते - देखते और
काम  करते - करते
कब सुबह से  दोपहर
और दोपहर  से सांझ हो गई !
पता ही नहीं  चलता  था ।
ठीक  वैसे ही जैसे -
कभी  ट्रेन के सफर में साथ
होती थी  सुंदर  सी  सवारी
और  स्टेशन कब आ गया !
पता ही नहीं  चलता  था ।
 आज ऐसा  कुछ भी नहीं है,
मगर  वक्त  दौड़  रहा है. .
न किसी को  देखने की  आस
न खेलना,  न  उछल  कूद,
न बस, न ट्रेन,  न स्कूल,
न काॅलेज  और न गली का चौराहा।
तो फिर  वक्त  क्यों   दौड़  रहा है  ?
खूब  सारा  काम  और
ढेर सारी  किताबें ,
टेलीविजन  की मारधाड़ से दूर,
कुदरत  की गोद  में ..
यह  अलग  ही दुनिया  है ,
जहां  काम   के  साथ-साथ
 दोस्तों   से  चैटिंग करते -करते
थक जाओ तो  घूम  आओ ,
किताब  पढ़ो , लिखो या
 सो जाओ, गहरी नींद  में...
सुबह से  दोपहर ,
दोपहर  से  सांझ और
सांझ से रात , फिर  रात  से सुबह
कैसे  होती है,  पता ही नहीं  चलता !
इसीलिए मैं  आज भी  खुश  हूँ ।
....
प्रदीप कुमार

Tuesday, September 13, 2016

हिंदी दिवस क्यों ?

हिंदी दिवस क्यों ? शीर्षक देखकर आप ज़रूर सोचने लगे होंगे   कि  कैसा पागल है ? कैसा हिंदी विरोधी है ? लेकिन साल में केवल एक दिन हिंदी दिवस या एक पखवाड़े को हिंदी पखवाड़े के रूप में मना कर आपको ऐसा नहीं लगता जैसे कनागत मना  लिए हों।  मतलब एक दिन याद करो और भूल जाओ।
हिंदी दिवस हो या किसी की पुण्यतिथि या जयंती ऐसे सभी दिवस मनाने के बाद क्या वो हमें याद रहते हैं ?  बिलकुल नहीं , तो  फिर इसकी बधाई कैसे दी जा सकती है ?
क्या इस देश में कभी अंग्रेजी दिवस मनाया जाता है ? फिर भी देखो कितनी फल-फूल रही है।
तो  अगर सचमुच हिंदी की प्रगति चाहते हैं तो क्यों न ऐसा किया जाए जिससे हमें  दिवस मनाने की ज़रुरत ही न पड़े।
क्या करें 
१- हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करें
२- हिंदी बोलने में शर्म अनुभव मत करें
३- हिंदी को सरकारी नौकरी में अनिवार्य बनाने के लिए संघर्ष करें
४- सरल हिंदी का प्रयोग करें
५- राजभाषा विभाग  की  मुश्किल हिंदी का विरोध करें
६- हिंदी में मौलिक लेखन को बढ़ावा दिया जाये
७- सभी सरकारी कामकाज हिंदी में हो
८- न्यायपालिका हिंदी और स्थानीय भाषा में काम करे
९- अनुवाद को प्रोत्साहन दिया जाये
१०- हिंदी को उसका सम्मान दिलाने की शुरुवात खुद से करें


Monday, September 12, 2016

"मुश्किल "

"मुश्किल "
जी हाँ,  बहुत  मुश्किल से 
मिलता है  कोई  ऐसा  -
जिसे  देखते ही 
प्यार  हो जाता है, 
आंखों  को  उसके
रूप -रंग  और 
हाव-भाव में  
बस 
प्यार  ही प्यार  
नज़र आता है, 
दिल  कहता है -
कह दे कि  तू ही  है 
जिसे  मैं  जन्म - जन्म  से
ढूँढ रहा हूँ  . 
मगर  ज़बान है कि 
हिलती  ही नहीं, 
होंठ हैं  कि  
खुलते ही नहीं, 
तब महसूस 
होता है  कि -
जितना  मुश्किल है 
प्रेम  का  पाना
उससे  भी  ज्यादा  
मुश्किल है   
प्रेम  का  इजहार  ....
प्रदीप कुमार

Thursday, September 08, 2016

जाने किस बात का क्या क्या मानी निकाला जाए ,
बस यही सोचकर हम उनकी तारीफ़ नहीं करते।  

Wednesday, September 07, 2016

दो गज़  ज़मीन न मिली तो उसका ग़म नहीं ,
तेरे दिल में न रहने का अफ़सोस रह गया  .