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Monday, July 28, 2008

ग़ज़ल

आदमी कितना यहाँ मज़बूर है ,
रिश्तों की ज़ंजीर में मज़बूर है ।
आदमी कितना यहाँ मजबूर है ,
हर कोई मंजिल से अपनी दूर है ।
ज़िन्दगी में कुछ नहीं हासिल मगर ,
आदमी कितना यहाँ मग़रूर है ।
जिसके दामन में भरा है जितना झूठ ,
वो आदमी उतना यहाँ मशहूर है ।
बाद मेहनत के भी जो है फ़ाक़मस्त ,
शर्तिया वो आदमी मज़दूर है ।
प्रदीप क्यों बदले वफ़ा का चलन ,
गर बेवफाई दुनिया का दस्तूर है .

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