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Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे 1

अल्हड़पन को छोड़ के इक्दम मैं इस घर मैं आई ,
खेल सभी छूटे बचपन के छूटे सारे बन्धु भाई ,
छूटा वो फ़िर उधम मचाना फुदक-फुदक कर आना-जाना ,
बेमतलब वो शोर मचाना इसे सताना उसे सताना ,
लड़कों जैसे दिन भर रहना जिम्मेदारी ना बाबा ना ।
खेल तमाशे छुपा छुपी के उछलकूद वो अल्हड़पन की
शब्दों में कैसे ढालो गे ? सभी शरारत वो बचपन की !
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे !

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