lock2.bmp (image) [lock2.bmp]

Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे -3

फ़िर अचानक ...
पन्द्रह बरस की नन्ही गुडिया ,
पल भर में बन गई बहुरिया ।
शादी की वो पहली रात ,
हाँ हाँ वही सुहाग की रात ।
शादी की उस पहली रात ,
उसकी मर्दों वाली बात ।
बोला वो फख्र के साथ ,
सोया है किस-किस के साथ ।
उसकी गन्दी जूठन मैंने ,
कैसे चखी सारी रात ।
वो सिसकी , वो दर्द , वो आहें ,
शब्दों में कैसे लिखोगे ?
कैसे तुम कविता लिखोगे ?
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे

४-
कितनी रातें जग कर काटी ,
कितनी रातें रोकर काटी ।
मैंने तनहा हो कर काटी,
अपने सपने खोकर काटी ।
इंतज़ार रहता उस पल का ,
कब वो कहेगा मुझको अपना ।
क्या होता है प्यार पति का ,
आया ऐसा कभी ना सपना ।
सपना आख़िर कैसे आता ,
नींद नही थी जब आंखों में ।
दर्द भरा था मेरे दिल में ,
दर्द छलकता था आंखों में ।
उस इंतज़ार , उस बेकरार , उस दर्द ओ गम को ।
शब्दों में कैसे ढालो गे ? कैसे तुम कविता लिखोगे ?
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे

No comments: