क्यों और किसलिए ?
क्यों और किसलिए ?
उसे तोहफा दिया तो ,
वो बेहद हैरान सी होकर बोली ,
इतने रूपये और तुम !
भला क्यों और किसलिए ?
क्या तुम्हारी धड़कन नहीं बढ़ी ?
ये तुम्हारे हाथ से छूटे कैसे ?
जो शख्स तीन रूपये बचाने के लिए ,
चार किलोमीटर पैदल घिसटता है .
पैसे की मोहब्बत में ,
बहन के घर जाने से भी बचता है ,
वो मुझे तीन हजार कैसे दे सकता है ?
मैं यही सोचकर हैरान हूँ !
बेशक तुम सही कहती हो ,
बेशक मैं कंजूस सही !
या कहो तो मख्खिचूस सही !
बेवजह क्या बा वजह भी खर्चने से डरता हूँ !
शायद इसीलिए थोडा बचाने के लिए मीलों चलता हूँ .
लेकिन मेरे सीने में इक दिल धड़कता है ,
उसमे मेरे अरमान व अहसासात का मसीहा बसता है .
वहाँ मेरी भावनाओं की लहर मचलती हैं .
एक पावन सी सूरत बन के शमां जलती है
धन तो क्या ये तन और मन भी उसका है
उसकी खातिर मेरा सब कुछ निछावर है
एक मेरी ज़रूरत है और दूसरी श्रद्धा .
और इन दोनों में इतना अंतर है ,
कि ज़रूरत को कर सकता हूँ सीमित ,
और श्रद्धा तो है असीम,अपार अपरिमित !
इसलिए .......
एक से बचाई दौलत सारी ,
दूसरी पर कुर्बान है !
और सच कहूं तो ,
यही इस माटी का
सच्चा बलिदान है !
तुम मेरी श्रद्धा हो और वो ज़रूरत !
और मेरे लिए श्रद्धा ज़रूरत से महान है !
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