lock2.bmp (image) [lock2.bmp]

Monday, June 22, 2009

भगवान का रूप

मेरी बीवी
तीन साल की बच्ची से अक्सर ये पूछती है -
बेटी आप किससे ज्यादा प्यार करती हो ?
मम्मी से या पापा से !
तो वो सदा एक ही जवाब देती है --
दोनों से .
मैं जब भी उसे बाहर लेकर जाता हूँ
तो वो अक्सर कोई चीज़
खाने की ज़िद करती है;
खा तो पूरी एक भी नहीं पाती
मगर लेती हमेशा तीन है .
मैं इस गणित से होकर हैरान,
जब भी पूछता हूँ कुछ सवाल !
तो उसका एक ही जवाब होता है -
एक मम्मी के लिए,
एक पापा के लिए
और एक मेरे लिए .
अपने सीधे जवाबों से वो सदा यही समझाती है
कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं,
इंसान अँधेरा तो वो धूप होते है .
भेदभाव को भला कब जानते है !
इसीलिए तो सबको समान मानते हैं !
इसीलिए तो सबको समान मानते हैं !!!

Friday, June 12, 2009

तुम

मुझे गुल मिले या खार, नहीं छूटता कोई,
आदत का हूँ गुलाम खुद दोषी नहीं कोई.
रहते थे तुम जो सामने रोता नहीं था दिल ,
बस इतनी ख़ुशी भी आपसे देखी नहीं गई .
फुरक़त के शब्-ओ-रोज बिताने के लिए ,
चिट्ठी लिखी बहुत मगर भेजी नहीं गई .
कल मिले और आज जुदा हो रहे हैं हम ,
दो चार पल की ख़ुशी भी सहेजी नहीं गई .
महंगाई जीरो पर है ये सरकार कह रही ,
कीमत किसी भी चीज़ की नीचे नहीं गई .
जो कुछ मिला, है मुझे जान से अजीज़ ,
मुझसे कोई भी चीज़ कभी छोड़ी नहीं गई.
यूं तो मुझे मिले बहुत लेकिन क्या करुँ ,
बन जाए मेरा दोस्त वो आया नहीं कोई.
जो भी मिला उसी में प्रदीप रहा मस्त ,
औरों की ख़ुशी से उसे चिढ़ नहीं रही .

Monday, June 01, 2009

अपनी एक सहकर्मी को समर्पित उसी की कहानी

वह कौन है , क्या है , कैसी है ,
ये आज तलक न जान सका .
है लड़की जैसी चीज़ कोई ,
बस इतना ही पहचान सका .
देखा जब उसको पहले पहल ,
कुछ गुमसुम सी शरमाई सी .
एक मूरत जैसे कुर्सी पर ,
कुछ बैठी थी घबराई सी .
और हाय हेलो के बदले में ,
कुछ बोली थी मुस्काई सी .
उस पल दो पल के मिलने में
बस इतना ही मैं जान सका .
है लड़की जैसी ..........................................

जब वक़्त ने करवट बदली, वो
फिर अपने दफ्तर में आई .
दफ्तर आते जाने कब वो ,
न्यूज़ रूम में घुस आई .
कुछ बद-इन्तजामी फैली फिर
एक शख्स रूम से बाहर हुआ .
वो पावरफुल एक लेडी है ,
ये तब मुझको अहसास हुआ .
वो रूप नया था रौब नया ,
बस इतना ही में जान सका .
है लड़की जैसी .....................

फिर नया रूप उसका देखा
वो मिलनसार व्यवहार कुशल .
वो खुला ज़हन और अपनापन ,
वो वाकपटु और चतुर चपल .
कुछ गुण नए उसमें देखे ,
हम बीते दिन फिर भूल गए .
वो गीत ग़ज़ल की दीवानी ,
फिर खुलने लगे कुछ राज़ नए .
उसके जीवन की पुस्तक का
ये नया वरक़ में जान सका .
है लड़की जैसी ...................

जो ठहरा था इक रोज कहीं ,
वो वक़्त लगा आगे बढ़ने.
और पन्ने उसके जीवन की
पुस्तक के, लगा में पढने .
फिर घर जैसा माहौल हुआ
जब लोग लगे वैसे लड़ने
जैस कि घर के बच्चे
सब इक दूजे से लड़ते हैं .
और अपनी अपनी ज़िद को लिए
सब लड़ते और झगड़ते हैं .
ऐसा भी नहीं इस झगडे में ,
इस मीन मेख के रगड़े में
वो गुण सारे काफूर हुए .
इस नोंक झोंक से न अपने
दिल के रिश्ते दूर हुए .
उसके मिल जुल कर रहने के
सदगुण को मैं जान सका .
है लड़की जैसी ..............................

वह लड़की आग की पुड़िया है
देखन में जैसे गुडिया है .
वह बात बात पे लड़ती है
मेमतलब सबसे झगड़ती है .
गुस्सा उसमें कुछ ज्यादा है
और भेजा गोया आधा है .
घर से खाने को लाती है
और बाँट सांट के खाती है .
गर छीन के कोई खाता है
तो खुद खाना तज देती है .
इस गुस्से से उसे क्या हासिल
न आज तलक मैं जान सका !
है लड़की जैसी .............................

मैं जितना उसको पढ़ता हूँ
वो उतना और उलझती है .
वो एक पहेली है ऐसी
जो मुझसे नहीं सुलझती है .
हर रोज नया कुछ खुलता है
गोया कोई प्याज का छिलका है .
कुछ दिन बीते तो उस पर भी
वक़्त बुरा ऐसा आया .
जो खुद को शेर समझती थी
सवा शेर उसने पाया .
कि वक़्त यहाँ है सबसे बड़ा
अब की हालात ने सिखलाया .
कुछ उथल-पुथल ऐसी आई
एक नई विपत्ति घिर आई .
कुछ काम नया अब उसको मिला
ये सुनकर उसका भेजा हिला .
गुस्से में भरकर यूं बोली
बन्दूक से ज्यूं निकले गोली .
ये काम नहीं मुझसे होगा
मैं छोड़ के सब कुछ जाऊंगी .
फिर लाख सँभाला सबने उसे
तब जाकर कुछ वो शांत हुई
वो बेहद गुस्सेवाली है
भेजा लगता कि खाली है .
कि हद से ज्यादा गुस्सा भी
कारण होता कमजोरी का .
एक दिन सबको ले डूबेगा
ये गुस्सा! हाँ मैं जान सका .
है लड़की जैसी .........................
.
ये प्यार मोहब्बत जितना भी
है अहम् हमारे जीवन में .
पर झगड़े और तकरार के बिन
क्या ख़ाक मज़ा है जीवन में !
ज्यों दिन के बाद ज़रूरी है
रात का काला अंधियारा ,
वैसे ही तकरार के बाद
आता है शमां प्यारा प्यारा .
ये जीवन !
जीने मरने का , प्यार में लड़ने झगड़ने का
दुःख और सुख में जीने का
हंसने का कभी रोने का
उठने का कभी सोने का
पाने का कभी खोने का
इन सबका अदभुत संगम है
वो लड़की जैसे जीवन है !
बस इतना ही मैं जान सका
वह लड़की है ! वह जीवन है !
बस इतना ही पहचान सका !
बस इतना ही पहचान सका !