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Saturday, September 22, 2012

                                                    समाधान

पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है  और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और  एक कम्पोजर को  देकर दूसरा खुद ही पढने लगा.
-----------------------------------------------
तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे -----  मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी  बेटी वन्या के नाम के साथ  यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .
हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला
 ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर  बिटिया और जोर से  रोने लगी.
मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है.
फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया .
हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी.
क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा.
अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी.
मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?
सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली .
हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है  मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी .
यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं  . वो वन्या को छेड़ने लगीं  .
आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी  ने वन्या से पूछा .
मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली.
बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा.
हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया .
वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया .
तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा.
वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही.
चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक  तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए  ?  पेरेंट  मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें  एक मासूम लड़की  पर  एक साथ टूट पड़ी.
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .
एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली.
वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी .
मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत  अच्छी बनाते हैं.
वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी  ने कहा.
करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .
अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा.
जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .
ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया .
पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.
मोहन ने सुना  तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ?
पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी  आंटी .  वन्या बोली.
हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .
पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना  . मैं उन सब आंटियों  को देकर आऊंगी.  वन्या बोली.
हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी  बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी.  मोहन ने कहा.
जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .
 एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?
मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी  होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए  पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया -  बेटी  की योजना को ज़रूर पूरा करेगा .
बिलकुल पक्का  बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . 
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 लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही  संपादक को  अपनी बेटी भी याद आ गई और  उसने कम्पोजर  से कहा. ठीक है भाई  सेट करो.  ठीक है . मैंने पढ़ ली है .
 

                                                    समाधान

पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है  और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और  एक कम्पोजर को  देकर दूसरा खुद ही पढने लगा.
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तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे -----  मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी  बेटी वन्या के नाम के साथ  यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .
हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला
 ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर  बिटिया और जोर से  रोने लगी.
मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है.
फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया .
हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी.
क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा.
अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी.
मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?
सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली .
हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है  मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी .
यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं  . वो वन्या को छेड़ने लगीं  .
आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी  ने वन्या से पूछा .
मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली.
बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा.
हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया .
वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया .
तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा.
वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही.
चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक  तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए  ?  पेरेंट  मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें  एक मासूम लड़की  पर  एक साथ टूट पड़ी.
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .
एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली.
वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी .
मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत  अच्छी बनाते हैं.
वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी  ने कहा.
करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .
अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा.
जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .
ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया .
पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.
मोहन ने सुना  तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ?
पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी  आंटी .  वन्या बोली.
हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .
पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना  . मैं उन सब आंटियों  को देकर आऊंगी.  वन्या बोली.
हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी  बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी.  मोहन ने कहा.
जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .
 एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?
मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी  होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए  पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया -  बेटी  की योजना को ज़रूर पूरा करेगा .
बिलकुल पक्का  बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . 
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 लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही  संपादक को  अपनी बेटी भी याद आ गई और  उसने कम्पोजर  से कहा. ठीक है भाई  सेट करो.  ठीक है . मैंने पढ़ ली है .
 

                                                    समाधान

पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है  और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और  एक कम्पोजर को  देकर दूसरा खुद ही पढने लगा.
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तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे -----  मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी  बेटी वन्या के नाम के साथ  यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .
हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला
 ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर  बिटिया और जोर से  रोने लगी.
मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है.
फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया .
हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी.
क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा.
अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी.
मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?
सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली .
हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है  मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी .
यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं  . वो वन्या को छेड़ने लगीं  .
आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी  ने वन्या से पूछा .
मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली.
बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा.
हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया .
वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया .
तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा.
वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही.
चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक  तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए  ?  पेरेंट  मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें  एक मासूम लड़की  पर  एक साथ टूट पड़ी.
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .
एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली.
वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी .
मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत  अच्छी बनाते हैं.
वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी  ने कहा.
करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .
अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा.
जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .
ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया .
पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.
मोहन ने सुना  तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ?
पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी  आंटी .  वन्या बोली.
हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .
पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना  . मैं उन सब आंटियों  को देकर आऊंगी.  वन्या बोली.
हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी  बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी.  मोहन ने कहा.
जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .
 एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?
मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी  होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए  पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया -  बेटी  की योजना को ज़रूर पूरा करेगा .
बिलकुल पक्का  बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . 
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 लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही  संपादक को  अपनी बेटी भी याद आ गई और  उसने कम्पोजर  से कहा. ठीक है भाई  सेट करो.  ठीक है . मैंने पढ़ ली है .
 

समाधान

पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है  और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और  एक कम्पोजर को  देकर दूसरा खुद ही पढने लगा.
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तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे -----  मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी  बेटी वन्या के नाम के साथ  यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .
हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला
 ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर  बिटिया और जोर से  रोने लगी.
मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है.
फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया .
हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी.
क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा.
अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी.
मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?
सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली .
हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है  मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी .
यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं  . वो वन्या को छेड़ने लगीं  .
आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी  ने वन्या से पूछा .
मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली.
बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा.
हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया .
वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया .
तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा.
वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही.
चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक  तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए  ?  पेरेंट  मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें  एक मासूम लड़की  पर  एक साथ टूट पड़ी.
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .
एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली.
वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी .
मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत  अच्छी बनाते हैं.
वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी  ने कहा.
करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .
अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा.
जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .
ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया .
पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.
मोहन ने सुना  तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ?
पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी  आंटी .  वन्या बोली.
हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .
पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना  . मैं उन सब आंटियों  को देकर आऊंगी.  वन्या बोली.
हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी  बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी.  मोहन ने कहा.
जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .
 एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?
मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी  होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए  पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया -  बेटी  की योजना को ज़रूर पूरा करेगा .
बिलकुल पक्का  बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . 
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 लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही  संपादक को  अपनी बेटी भी याद आ गई और  उसने कम्पोजर  से कहा. ठीक है भाई  सेट करो.  ठीक है . मैंने पढ़ ली है .
 

Friday, September 14, 2012


                             छोटी छोटी खुशियाँ

ज़िन्दगी में अगर किसी से प्यार या नफरत न हो तो ज़िन्दगी कितनी बेरंग और नीरस होती है . ये बात वो इन्सान बेहतर समझ सकता है जिसने कभी किसी से मोहब्बत या नफरत न की हो. सच कहें तो ज़िन्दगी एक सफ़र है और सफ़र में हमसफ़र की ज़रुरत सभी को पड़ती है क्योंकि ज़िन्दगी का लम्बा और मुश्किल सफ़र अकेले नहीं काटा जा सकता . इसलिए लोग मोहब्बत करते हैं और मोहब्बत नहीं निभती या महबूब बेवफा हो जाए तो नफरत हो जाती है. बेशक मोहब्बत और नफरत विपरीत शब्द हों लेकिन दोनों ही वक़्त आने पर इंसान के हमसफ़र बनते हैं और ज़िन्दगी का सफ़र आसान हो जाता है. मोहब्बत में इंसान एक दूसरे को जितना समझने लगें समझो मोहब्बत उतनी गहरी हो गई . दीप की ज़िन्दगी में भी जब मोहब्बत का फूल खिला तो उसे भी लगा जैसे थमी हुई ज़िन्दगी दौड़ने लगी और सफ़र कितना आसान हो गया . ऐसे में यदि कोई यह दावा करने लगे तो कुछ गलत नहीं होता -
हमें अच्छी तरह मालूम है उनके भी दिल क़ी हालत,
वो जिनकी याद में हम रात भर करवट बदलते हैं .
आज दीप कुछ पीछे मुड़कर देखता है तो उसे एक एक बात याद आने लगती हैं . दीप को भटकती  हुई आत्मा कहें तो गलत नहीं होगा . उसकी ज़िन्दगी में सब कुछ ऐसे  होता है क़ि भाग्य पर भरोसा करना ही पड़ता है . अब भला इसे आप भाग्य नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे क़ि जिस फेसबुक पेज पर उसे अपनी सबसे अच्छी दोस्त मिली वो पेज उसका नहीं था. फिर वो दोस्त कब उसकी जान बन गई पता ही नहीं चला . दरअसल हुआ यूं क़ि एक दिन दीप ने अपना मेल ओपन करने का प्रयास किया तो वो ओपन ही नहीं हुआ. बहुत कोशिश की और पासवर्ड बदला . तब कहीं मेल ओपन हुआ . अब मेल देखते ही उसके होश उड़ गए. किसी ने उसका मेल हैक कर लिया था. हैकर  दीप के मेल से चैट करता था. उसने दीप के दोस्तों को चेतावनी भी दी कि अब इस मेल आई डी को भूल जाए. खैर अब , दीप चौकस  हो चुका था. उसने चैट हिस्टरी चैक की. अपने सभी दोस्तों को मेल किया और बताया कि उसका मेल किसी ने हैक कर लिया था . फिर अपना नाम और कुछ निजी डिटेल बदली. इस तरह उसने पासवर्ड सेफ कर लिया.
एक दिन दीप ने मेल ओपन किया तो उसमे दोस्ती का अनुरोध था लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि अनुरोध किसी नीरज के नाम था. दीप ने फेसबुक का वो पेज खोलना चाहा तो वो खुला ही नहीं . खुलता भी कैसे पासवर्ड तो मालूम ही नहीं था क्योंकि वो फेसबुक पेज किसी और का था. बार बार क्लिक करने पर सन्देश आया कि पासवर्ड भूल गए हैं तो कुछ डिटेल दें . डिटेल देने पर नए  पासवर्ड  के लिए दीप के मेल में लिंक आ गया .  लिंक पर जाने से वो पेज खुल गया. अब चोर दीप की आँखों के सामने था. उसने मन ही मन उसे तंग करने की ठान ली .
नए दोस्तों के अनुरोध आते तो कभी कभी दीप उस पेज को खोलने लगा . इस बीच नीरज पेज खोलने की कोशिश करता तो पासवर्ड के लिए लिंक आता . लेकिन ये चोर का दुर्भाग्य कि जब उसने दीप का मेल हैक किया हुआ था तो उसने अपना फेसबुक पेज दीप के मेल से जोड़ दिया था. बस यहीं उसने गलती कर दी थी . वो कहते हैं ना कि अपराधी कितना भी सयाना हो  कोई न कोई गलती ज़रूर करता है.
इसी बीच दीप ने गीतिका को दोस्ती का अनुरोध भेजा तो उसने मंज़ूर कर लिया . कहते है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी . बात बढ़ी और गीतिका कब दीप की सबसे अच्छी दोस्त बन गई पता ही नहीं चला . फिर दोनों ने जी टाक पर बात शुरू कर दी  और बात फोन तक भी जा पहुंची . दीप अक्सर उसके साथ बात करता . कभी डरता डरता फोन भी करने लगा . उसने अपना डर बताया तो गीतिका ने किसी भी वक़्त बात करने की मंज़ूरी दे दी.
गीतिका बहुत अच्छी लड़की है. मन की साफ़ और मासूम लेकिन इरादे की पक्की . वो ज़िन्दगी में कुछ बनना चाहती है. लेकिन नेट ज्यादा इस्तेमाल  करने के कारण अपनी पढ़ाई पर मन नहीं लगा पाती. दीप ने उसे नेट का इस्तेमाल  कम करने की सलाह दी तो वो मान भी गई . मगर दीप को आदत सी हो गई थी गीतिका को ऑंनलाइन देखने की. इसलिए उसे कभी कभी अफ़सोस होता कि उसने गीतिका को ऐसी सलाह क्यों दी ? लेकिन फिर अपना स्वार्थ छोड़ कर गीतिका के मकसद के बारे में सोचता तो यह बात ठीक लगती . अजीब उलझन थी खुद ही किसी को इलाज बताया और उसका असर भी खुद पर ही पड़ा . ये सब दोस्ती गाढ़ी होने के लक्षण थे . लेकिन दीप गीतिका को कैसे कहता कि ऑंनलाइन ज्यादा रहा करो , कि मैं हर वक़्त तुम्हे अपनी आँखों के सामने देखना चाहता हूँ . कि तुमसे खूब बाते करना चाहता हूँ . मगर कहे कैसे उसने तो खुद ही गीतिका को नेट का इस्तेमाल  कम करने कि सलाह दी थी. कभी कभी खुद ही कोई लक्ष्मण रेखा खींचकर उसे लांघना कितना मुश्किल होता है ? नेट कम इस्तेमाल करने की सलाह देने वाला कैसे कहे कि ऑनलाइन रहा करो और  कि मेरा मन करता है तुमसे खूब बातें करूं .
फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोस्ती कब प्यार में बदल गई . दीप को पता ही नहीं चला . दरअसल इसमें भी भाग्य ने ही साथ दिया. वरना दीप तो ज़िन्दगी भर अपनी मोहब्बत का इज़हार ना कर पाता और शायद उसकी मोहब्बत ५० प्रतिशत ही रह जाती. लेकिन भाग्य को यह मंज़ूर नहीं था. एक दिन गीतिका ने ज़िक्र छेड़ा तो बातों बातों में दीप ने अपने मन की बात बता दी. इस तरह दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई .
दीप और गीतिका की ठहरी हुई ज़िन्दगी अब दौड़ने लगी थी . एक दिन गीतिका ने बताया कि वो बहुत उदास है और अपनी मौजूदा नौकरी से तंग आ चुकी है , दोनों ने बहुत देर बात की तो पता चला कि दरअसल वो नौकरी से नहीं बल्कि अपनी सहकर्मियों से तंग आ चुकी  है,  वहाँ के माहौल से तंग है .
दीप ने उसे समझाने की  कोशिश की . गीतिका तुम्हारी सहकर्मी अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ हासिल कर चुकी हैं क्योंकि कुछ लोग समझते हैं कि शादी ही इस ज़िन्दगी की आखिरी  मंजिल है . ऐसे लोग नहीं चाहते कि उनके बीच कोई ऐसा भी  हो जो  आगे निकलना चाहे . दीप ने कहा कि ऐसे लोगों की वजह से क्यों परेशान रहती हो ? लेकिन वो भी जानता  है कि ऐसे लोग  ना चाहते हुए भी परेशानी का कारण बन जाते हैं . वो नहीं चाहते कि कोई उनसे आगे निकल जाए . वो खुद कुँए के मेंढक होते हैं तो ये कैसे बर्दाश्त करें कि दूसरा कुँए से बाहर निकल जाए . इसलिए उसे कुँए में रोकने के लिए वे हर संभव कोशिश करते हैं . लेकिन जो इस से बच कर निकल जाए वही इंसान होता है नहीं तो वो भी कुए का मेंढक बन के रह जाता है .
मुझे कोई नहीं समझता . कोई भी नहीं . मुझे इस माहौल से छुटकारा चाहिए. गीतिका बोली .
तो किसी बहाने से छुट्टी ले लो . दीप ने सब कुछ जैसे बहुत आसान समझते हुए कहा .
बहुत देर में दीप गीतिका का मन बहलाने में कुछ कामयाब रहा. लेकिन इस बीच बुरा वक़्त बीत गया और भाग्य ने करवट बदली .
एक खुशखबरी है . गीतिका ने चहकते हुए बताया .
क्या ? दीप जैसे एक पल में सारी बात जान लेना चाहता था.
हम कल चंडीगढ़ जा रहे हैं . गीतिका बोली.
वाह ! क्या बात है , किस वक़त ? कितने दिन के लिए ?  कौन कौन ? दीप ने सवालों की झड़ी लगा दी .वो खुश था तो कुछ बेचैन भी था . इसलिए एक साथ इतने सारे सवाल उसके मन में तूफ़ान की तरह उठ खड़े हुए. खुश इसलिए कि गीतिका को कुछ ताजगी मिलेगी और बेचैन इसलिए कि पता नहीं उसकी जान कितने दिन दूर रहेगी .
कल . मम्मी पापा के साथ . एक -दो दिन के लिए. - गीतिका बोली.
बहुत बढ़िया तुम्हारा मन बहल जाएगा . कुछ तो माहौल बदलेगा . दीप बोला. उसे दो दो ख़ुशी एक साथ मिली . एक गीतिका को कुछ  दिन उस  माहौल से छुट्टी मिलने की ख़ुशी और दूसरी ज्यादा दिन अपने महबूब से न बिछुड़ने की ख़ुशी .
लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता जितना हम समझते हैं . दो दिन गीतिका के लिए दो पल के समान थे जो कब बीत गए पता ही नहीं चला . कहते हैं ख़ुशी के दिन भी पल के समान लगते हैं . लेकिन दीप के लिए तो दो दिन दो बरस से भी लम्बे हो गए. फ़ोन की घंटी बजते ही लगता गीतिका का ही होगा . लेकिन किसी और का नाम देखते ही वो निराशा के भंवर में डूब जाता . फिर मेसेज की घंटी बजती तो पक्का यकीन होता कि उसका मेसेज होगा. लेकिन कोई और मेसेज देखते ही उसका मन करता फ़ोन को फेंक दूं . वो बार बार फोन देखता,  ऑन करता और गीतिका को ऑनलाइन न पाकर निराश हो जाता . उसे बार बार  मेसेज छोड़ता  कि पढेगी तो जवाब  भी देगी . रोज सुबह कार्ड भेजता कि देखेगी तो मेल का जवाब  आएगा . लेकिन सब बेकार . फिर भी दीप ने मेसेज छोड़ना बंद नहीं किया . उधर गीतिका मेसेज देखती , कार्ड चेक करती लेकिन जवाब देने का वक़्त नहीं मिलता था . दीप ने  फिर मेसेज छोड़ा -
आज पिजर गार्डन का प्रोग्राम है क्या .
आज नहीं . आज घर आने का प्रोग्राम है  - - - और आ भी गए .
दीप ने अपनी आँखें मली क्योंकि उसे यकीन ही नहीं हुआ कि गीतिका घर पहुँच गई.
एक दो सवाल जवाब के बाद उसे मेसेज पर  भरोसा हुआ  और उसकी जान में जान आई . अब वो सोच रहा था कि पहली सारी कहानी के बराबर तो ये एक लाइन हो गई जिसने एक पल में इतना लम्बा  इंतज़ार और बैचैनी खतम कर दी . अब दीप को अहसास हुआ कि छोटी छोटी खुशियों को जीने में ही सच्चा सुख है . उसने ठान लिया कि किसी दिन गीतिका को भी ये बात समझा देगा .