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Wednesday, July 15, 2009

सिलसिला

घुप्‍प अंधेरा भगाने को क्‍या चाहिए ,
एक जलता हुआ बस दिया चाहिए .
जो न टूटे कभी भी किसी हाल में ,
अब तो ऐसा कोई सिलसिला चाहिए .
कितनी खामोशियाँ देखो पसरी यहाँ,
इस जहां में कोई जलजला चाहिए .
हो गई है जमा अपने रिश्तों में बर्फ,
हमको फिर आग़ाज ऐ मुरासला चाहिए.
हो रही है थकन फिर भी कट जाएगा,
इस सफ़र को तो अब मरहला चाहिए.
खाली बातों से कब बदले हैं निज़ाम ,
बेशक उसके लिए मुक़ातला चाहिए .
खाली रहने से तो अब न होगी गुज़र,
ज़िन्दगी के लिए कोई मशग़ला चाहिए.
कैसा ये और बोलो है किसका निज़ाम,
जिसको हर हाल में मदख़ला चाहिए .
आदमी की वहां क्‍या होगी बिसात ,
ख़ुदा से भी जहां मोजिज़ा चाहिए.
आपको चाहा तो क्‍यूं हुए हो ख़फ़ा ,
फांसी के वास्‍ते तो मज़लमा चाहिए .
जिनको तन्हाइयों ने सताया बहुत ,
प्रदीप उनको कोई हमइना चाहिए .