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Saturday, September 22, 2012

                                                    समाधान

पत्रिका प्रिंटिंग में जाने में अभी करीब ४ घंटे थे लेकिन संपादक के दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी. दरअसल अब तक इस अंक की कहानी नहीं आई थी. लेखक का कहना था कि कहानी डाक से भेज दी गई है  और दफ्तर में कहानी मिली नहीं थी. हमेशा की तरह स्पेयर कहानी भी नहीं थी. परेशान होकर संपादक ने कह दिया था की कोई पुरानी कहानी निकाल लो और चिपका दो. इसी बीच लेखक का फोन आया और उसने कहा कि मैंने कहानी मेल कर दी है . संपादक कंप्यूटर पर ही बैठा था . उसने मेल देखा, थैंक्स बोला और फ़ोन पटक कर कहानी डाऊनलोड करने लगा. टाइम नहीं था इसलिए दो प्रिंट लिए और  एक कम्पोजर को  देकर दूसरा खुद ही पढने लगा.
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तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे -----  मोहन काम से लौटा ही था कि फ़ोन की धुन बजने लगी . उसने अपनी  बेटी वन्या के नाम के साथ  यही धुन लगा रखी थी . फ़ोन कान से लगाते ही बिटिया के जोर जोर से रोने की आवाज आने लगी .
हेलो हेलो - मोहन परेशान होकर बोला
 ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ऊऊं ----पिता की आवाज सुनकर  बिटिया और जोर से  रोने लगी.
मोहन दुखी हो गया . पता नहीं क्या बात है ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने सोचा भला यह कैसा काम है कि इतने लम्बे वक़्त के लिए परिवार से दूर आना पड़ता है.
फ़ोन काटकर उसने दूसरा नंबर मिलाया .
हेलो , हेलो , हेलो . फ़ोन क्यों काट दिया ? संगीता ने छूटते ही सवालों की झड़ी लगा दी.
क्या बात है ? बेटी को क्यों रुला रखा है ? मोहन ने सवाल के जवाब में सवाल ही दागा.
अब क्या बताऊँ ? सृष्टि , अमन और ताशु की मम्मियों ने इसे छेड़ दिया तब से रोये जा रही है . संगीता की आवाज में दुःख की जगह हलकी सी हंसी की खनक थी.
मोहन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और तपाक से बोला - बेटी रो रही है और तुम्हे हंसी सूझ रही है ?
सुनो तो यार . पहले पूरी बात सुन लो फिर बताना कि ये हंसी की बात है या रोने की . संगीता बोली .
हाँ हाँ सुन रहा हूँ . जल्दी बोलो, फ़ोन का बिल बढ़ रहा है  मोहन पूरी बात सुनने के लिए उतावला था मगर फ़ोन के बढ़ते बिल पर भी उसकी नज़र थी .
यार वो रोज शाम की तरह नीचे खेलने गई थी . वहाँ सृष्टि, अमन और ताशु तीनों की मम्मी भी बैठी हुई थीं  . वो वन्या को छेड़ने लगीं  .
आजकल तुम्हारे पापा कहाँ हैं ? सृष्टि की मम्मी  ने वन्या से पूछा .
मेरे पापा तो बहुत दूर गए हैं . वन्या इतरा कर बोली.
बहुत दूर कहाँ , कहीं विदेश गए हैं ? सारी औरतों ने एक साथ पूछा.
हाँ हाँ विदेश ही गए हैं . वन्या ने जवाब दिया .
वो बहुत दूर है और बहुत सुन्दर जगह है . एक दिन हम सब भी वहाँ जायेंगे. वन्या से बताये बिना रहा नहीं गया .
तो फिर वो तुम्हें साथ क्यों नहीं लेकर गए ? ताशु की मम्मी ने वन्या को छेड़ा.
वो वहाँ बहुत दिन रहेंगे इसलिए नहीं ले गए. वरना फिर मेरी पढ़ाई छूट जाती. मैंने ही उन्हें नहीं कहा वरना वो तो ले जाते. बीच में एक बार हम सबको बुलायेंगे. हम खूब घूमेंगे. पिछली बार समुन्दर दिखाया था फिर बर्फ दिखाने ले गए थे . हम सबने खूब मज़े किये थे . वन्या ने एक सांस में बड़े गर्व के साथ सारी बात कही.
चल चल हमें सब मालूम है . वो तुझे बिलकुल प्यार नहीं करते . आज तक  तुझे कभी स्कूल छोड़ने गए  ?  पेरेंट  मीटिंग में गए कभी ? कभी डांस क्लास में छोड़ने गए ? सारी औरतें  एक मासूम लड़की  पर  एक साथ टूट पड़ी.
हाँ गए हैं डांस क्लास से लेने गए थे एक बार . वन्या को याद आया तो जवाब दिया .
एक बार से क्या होता है ? कभी स्कूल छोड़ने जाते हैं ? पेरेंट मीटिंग में या किसी और फंक्सन में ? तुझसे प्यार होता तो जाते ना ? ताशु की मम्मी बोली.
वन्या से रहा नहीं गया मगर उसे याद ही नहीं आया कि पापा कभी उसे स्कूल छोड़ने गए हों . वो खुद अपने पापा से कई बार कह चुकी थी कि सबके पापा अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं. मगर क्या करती ? अचानक उसे जाने क्या सूझा और उसने बात बदल दी .
मेरे पापा मुझे बहुत पयार करते हैं. वो बहुत अच्छे हैं . मेरे साथ खूब खेलते हैं . वो एक नहीं २-३ नौकरी करते हैं. और पता है वो अंडे की भुज्जी बहुत  अच्छी बनाते हैं.
वो कुछ नहीं करते सफाई मत दे . सृष्टि की मम्मी  ने कहा.
करते हैं. वो बहुत काम करते हैं. और मुझे बहुत प्यार करते हैं. वो बहुत अच्छी भुज्जी बनाते हैं . ये कहकर वन्या जोर जोर से रोने लगी .
अब तक संगीता सिर्फ़ तमाशा ही देख रही थी . उसने प्यार से वन्या को गोद में उठाया. तो वन्या को कुछ और हिम्मत आई और उसने कहा.
जब मेरे पापा आ जायेंगे तो तुम्हें दिखाऊंगी कि मेरे पापा कितनी अच्छी भुज्जी बनाते हैं
इतनी बात बता कर संगीता हंसने लगी . उसने कहा - अब बताओ हंसी की बात नहीं है क्या ? लो इसी से पूछ लो .
ये कहकर संगीता ने फ़ोन वन्या के कान से लगा दिया .
पापा . बताऊँ बताऊँ.... वो सब आंटी बहुत गन्दी हैं . सब .... . वन्या बोली.
मोहन ने सुना  तो लगा अब वो रो नहीं रही थी . हाँ बोलो बेटी . क्या हुआ ?
पापा वो आंटी सब बहुत गन्दी हैं . कहती हैं तुम्हारे पापा तुमसे प्यार नहीं करते . तुम्हें घुमाने नहीं ले गए . और कुछ बनाना भी नहीं जानते. मैं उसे कभी बात नहीं करूंगी . गन्दी  आंटी .  वन्या बोली.
हाँ हाँ मैं .........मोहन को सूझ नहीं रहा था कि क्या कहूं .
पापा जब आओगे तो भुज्जी बनाना  . मैं उन सब आंटियों  को देकर आऊंगी.  वन्या बोली.
हाँ हाँ ठीक है . मगर तुम तो कहा रही हो उनसे कभी  बात नहीं करोगी फिर भुज्जी कैसे देने जाओगी.  मोहन ने कहा.
जब आप बना लोगे तो मैं प्लेट में रख कर उन सबको देकर आऊंगी . और उनसे बात भी नहीं करूंगी .
 एक पर्ची पे लिख दूँगी कि लो देखो खाकर . मेरे पापा ने बनाई है . कहती हैं पापा को कुछ नहीं आता . लो देख लो खाकर . आता है कि नहीं ?
मोहन बेटी की इस योजना पर हँसे बिना ना रह सका . उसे याद आया कि सुबह के वक़्त अक्सर वो काम पर होता है इसलिए वन्या को स्कूल छोड़ने नहीं जा पाता . इतवार को छुट्टी  होती तो सोने से ही फुर्सत नहीं होती . इसलिए डांस क्लास में भी छोड़ने नहीं जा पाता . उसे ये भी याद आया कि एक दिन कुछ वक़्त था उसके पास और बेटी उदास थी तो उसने अंडे की भुज्जी बनाकर खिलाई थी . कमाल है बेटी एक एक बात को कैसे याद रखती है . अपनी समस्या का समाधान बेटी ने खुद निकाल लिया था . इसलिए  पिछली सब बातें याद करते हुए मोहन ने दिल में तय कर लिया -  बेटी  की योजना को ज़रूर पूरा करेगा .
बिलकुल पक्का  बेटी . आते ही सबसे पहले यही काम करूंगा. मोहन ने यहाँ कहकर फ़ोन काट दिया . 
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 लड़कियां भी कितनी समझदार होती हैं ? ये सोचते ही  संपादक को  अपनी बेटी भी याद आ गई और  उसने कम्पोजर  से कहा. ठीक है भाई  सेट करो.  ठीक है . मैंने पढ़ ली है .
 

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