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Saturday, June 14, 2008

माँ की बरसी न फ़क़त

माँ की बरसी न फ़क़त रस्म ओ राह बन के रहे ,
याद उनकी न फ़क़त रस्म ओ राह बन के रहे .
चलो कुछ ऐसा करें
आँख के आंसू अपने ,
किसी मासूम की
आँखों के बन जाएँ सपने
उनकी याद आये तो
किसी बेबस के लिए
हाथ अपने भी बढें
उसके सहारे के लिए
याद में उनकी, किसी आँगन में ,
बीज रोपें जो शज़र बन के रहे
उसके फल खाके यूं बच्चे बोलें
माँ जी यूं ही ताजी हवा बन के रहे .
माँ की बरसी न फ़क़त
रस्म ओ राह बन के रहे ,
याद उनकी न फ़क़त
रस्म ओ राह बन के रहे .................
अब के दर से न tere
koi भूखा प्यासा गुज़रे
सब तेरे रहम ओ करम
बेबस ओ मुफलिसों पे ही गुज़रे
माँ सी ममता से हो भरा
तेरा अपना दामन
जेठ की तपती धूप में
भीकिसी मजलूम के तन
प्यार सावन सा झूम के
बरसे एक बे माँ का कोइ लाल अगर
तेरी ममता से हरा बन के रहे
माँ की बरसी न फ़क़तरस्म ओ राह बन के रहे
याद उनकी न फ़क़त रस्म ओ राह बन के रहे .

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