रोज़ तिल से पहाड़ होती गलती,
शुक्र ये कि अब नहीं होती गलती।
कोई अपना जो  मुझसे रूठा  है , 
अब ये दुनिया ही कुछ नहीं लगती  ।
माफ़ी की अब भी है मुझे उम्मीद ,
बेशक वो थी बहुत  बड़ी  गलती।
मैं अगर देखता भी रहूँ  मुड़कर ,
ज़िन्दगी किसी तरह नहीं थमती ।
आज भी उसकी जुस्तजू है मुझे  ,
जिसकी कोई  खबर नहीं मिलती । 
बंदिशें खुद ही  लगाई  हैं  मैंने ,
कैसे तोडूं  वजह  नहीं  मिलती ।
वो मेरे दिल में अब भी रौशन है ,
जिसकी सूरत भी अब नहीं दिखती ।
आग कुछ ऐसी लगाई थी मैंने ,
किसी सूरत भी जो नहीं बुझती ।
अपनी लाचारी क्या कहूं तुमसे ,
दिल तो चाहे, जुबां नहीं हिलती ।
दिल की बातें किसे कहे प्रदीप ,
अब तबीयत कहीं नहीं मिलती .
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
1 comment:
bariya Sir, bahut bariya
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