है बात अलग ये कोई क्या क्या कमाता है, 
कोई दाम कमाता और कोई नाम कमाता है ;
आराम किसे नसीब है इस दुनिया में यारों, 
कोई हंसके बिताता, कोई रोके बिताता है ; 
हैं  दर्द बहुत यूं तो हर  सीने में लेकिन ,
 कोई खुद से छिपाता, कोई सबको बताता है ;
उस शख्स का तो यारों अंदाज जुदा है कुछ, 
वो दिल की तपिश को भी आंसू से बुझाता है;
 कोई काम नहीं उसको ये सच है मगर लेकिन,
 वो सुबह का निकला, घर रात को आता है; 
जीने की तमन्ना में हम रोज ही मरते हैं, 
कहीं सौदा इज्ज्त का, कोई आन गवांता है;
बदलेंगी नहीं रोकर ये हाथों  की रेखाएं  , 
अनमोल घड़ी तू फिर क्यों यूं ही गवांता है.
ले दे के फ़क़त मैंने बस इतना कमाया है,
प्रदीप अंधेरों को खुद जल के भगाता है ;
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
1 comment:
हैं दर्द बहुत यूं तो हर सीने में लेकिन ,
कोई खुद से छिपाता, कोई सबको बताता है ;
wah !
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