हम करें क्यों किसी की निन्दा, 
कौन जाने हों दो घड़ी जिन्दा ;
तुमने मुझपे किए करम इतने, 
एक पत्थर को कर दिया जिंदा; 
जान  होते  हुए  भी था मुर्दा , 
तुम मिले तो हो गया  जिंदा;
ढल गई शाम हो लें रूखसत, 
हम सुबह को  मिलेंगे आइंदा; 
मुझको खुश करोगी फिर हंसके, 
देर तक कब रहा हूं  आज़ुर्दा ; 
पिंजरे से एक दिन उड़ जाएगा, 
क़ैद कब तक रहेगा  परिन्दा ;
सारी दुनिया को लूटकर देखो, 
नेताजी कह रहा है दो चन्दा ; 
महंगाई ज़ीरो तले भी जा पहुंची, 
हमको ना कुछ दिखा कहीं मन्दा; 
जो मिला पहले जी लें जी भरके, 
बाद सोचेंगे क्या रहा पसमान्दा; 
तुम मेरी जान मेरी मंजिल हो, 
प्रदीप  क्यूं  भला हो शर्मिंदा ;
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
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