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Tuesday, February 26, 2008

जाने वो कौन सी दुनिया में बैठे हैं ,
रूबरू मेरे मगर और कहीं बैठे हैं ।
जाने किसलिए बुत वो बने बैठे हैं ,
कुछ तो है जो तने बैठे हैं ।
उठ रहे हैं दिल में तूफ़ान कई ,
रूबरू मेरे शांत भले बैठे हैं ।
कुछ तो आएगा सारे सवालों का जवाब ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
कुछ तो है जो उनके होटों पे लरजना चाहे ,
बस यही सोच के हम भी यहीं बैठे हैं ।
एक मुद्दत से दिल जलाकर प्रदीप
हम भी हाले दिल सुनने के लिए बैठे हैं .

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