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Friday, February 29, 2008

पहली मुलाकात

पहले-पहल जो उनसे मिले
तो हाल बुरा था अपना ।
पाँव न पड़ते थे धरती पर
बस हाल बुरा था अपना ।
डरते-डरते दी जब दस्तक
दरवाजे पे की थी ठक-ठक ।
फ़िर भीतर कुछ हुई थी हलचल
इधर मची थी दिल में हलचल
खट से उसने कुण्डी खोली
दिल में जैसे लगी थी गोली
बनी हकीकत हुई रूबरू
मेरी हमदम मेरी माहरू
हम जिसको समझे थे सपना
वो ख़याल बुरा था अपना
पहले -पहल जो उनसे मिले
तो हाल बुरा था अपना .
उनसे मिलने की बेताबी
मुश्किल से वो हुए थे राज़ी
सोचा था जब मिलेंगे उनसे
दिल का हाल कहेंगे उनसे
अन्दर से ही देकर पुस्तक
बाहर से कर देंगी रुखसत
लेकिन हम न टलेंगे ऐसे
हाथ पकड़ लेंगे हम झट से
ऐसे होगा वैसे होगा
वो कुछ घबराएंगे हमसे
कुछ हम शर्माएंगे उनसे
मगर हुआ न कुछ भी ऐसा
सब कुछ लगा हादसे जैसा
सचमुच में जब हुआ सामना
हाल बुरा था अपना
पहले -पहल जो उनसे मिले तो .........
बोले वो fक अन्दर आओ
दिल कहता था रुखसत पाओ
आँख नहीं उठती थी मेरी
सांस तेज़ चलती थी मेरी
पाँव नहीं बढ़ते थे आगे
माथे पे था आया पसीना
तेज़ -तेज़ धडके था सीना
डरते-डरते पाँव बढाये
कुछ शरमाये कुछ घबराए
जो कुछ भी कहना था उनसे
वैसा कुछ भी कह न पाए
प्यार नहीं था बस की बात
दिल बदन कुछ न था साथ
उस दिन की मत पूछो कुछ भी
वो काल बुरा था अपना . हाल बुरा था ......
शायद उनके दिल की हालत

जुदा नहीं थी हमसे
उखडी सी लगती थी
लेकिन खफा नहीं थी हमसे .
कहने को हम दो थे घर में
लेकिन जैसे सौ थे घर में
पास खडे थे फिर भी दूरी
कुछ न कहने की मजबूरी
दिल से दिल की थी बस बातें
वरना पसरे थे सन्नाटे !
हमको उनसे ,उनको हमसे
कहना था जाने कितना
कुछ मत पूछो खामोशी का
साल बुरा था अपना
पहले-पहल जो उनसे ...... हाल बुरा था अपना ..
फिर बोली वो करके हिम्मत

क्या पानी ले आऊं ?
हाँ ! बस मेरे मुंह से निकला
कैसे उसे छुपाऊँ ?
फिर पानी लेने ke बहाने ,
हाथ छू गया अपना
फागुन की मीठी सर्दी में
माह जेठ था अपना
जाने किसके अंदेशे में
कांप रहे थे हाथ
दिल जाते ही बदन भी अपना
छोड़ गया था साथ
सहना मुश्किल हुआ तो ,
हमने छोडा प्रेम का साथ
अच्छा घर है ! ऐसा कहकर
बदली हमने बात .
खामोशी के लब खुलते ही
प्यार कहीं काफूर हो गया
मिलने हम गए थे उनसे
वापस आये घर से मिलके
जल्दी-जल्दी रुखसत होकर
जाने कब हम आये बाहर
होश पड़े तो हमने जाना
टूट गया है सपना .
पहले-पहल जो उनसे मिले तो
हाल बुरा था अपना .. हाल बुरा था अपना ..

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