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Sunday, July 20, 2008

ग़ज़ल

मेरा मकसद मेरी मंजिल तुम हो ,
मेरी जुस्तजू की मंजिल तुम हो ।
मेरा माजी औ मुश्तक्बिल हो तुम्ही ,
मेरी हसरतों का हासिल तुम हो ।
यूं तो देते हैं बहुत साथ मगर जो ,
दिल में धड़कती है वो धड़कन तुम हो ।
यहाँ सब हैं मुझको गिराने वाले ,
मेरी जानिब जो हाथ बढाए वो तुम हो ।
अब तक तो जिया यूं ही बेकार जहां में ,
मंजिल है मेरे आगे जब सामने तुम हो ।
प्रदीप अंधेरों में यूं ही जलता रहेगा ,
हिम्मत है मेरे साथ जब तक भी तुम हो

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