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Friday, July 18, 2008

मुक्तक

मेरी ज़िन्दगी में है उससे बहार,
वही है मेरी फसल-ऐ- बहार ।
ऐसे बदली है ज़िन्दगी मेरी ,
जैसे पतझड़ के बाद आये बहार ।
मुझे आज भी है इंतज़ार ,
नहीं आयेंगे ये भी ऐतबार.

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