अफ़सोस मैं फिर भी ज़िंदा हूँ !
इंसान नहीं मैं गुस्ताखियों का पुलिंदा हूँ ,
रोज नई नई गलतियाँ करता हूँ ,
अपने बुरे कामों का बोझ किसी पे
लादकर और बेशर्मी की चादर ओढ़कर ,
थोडी सी गर्दन झुका कर
 बेगैरत  होकर माफ़ी मांग लेता हूँ -जी मैं अपनी गलती पे शर्मिंदा हूँ ,
इंसान नहीं मैं गुस्ताखियों का पुलिंदा हूँ !
अफ़सोस मैं फिर भी ज़िंदा हूँ !
रात गई तो बात गई ,
फिर दिन निकला वही बात हुई ,
फिर वही झूठ फिर वही झमेला ।
कभी किसी का छीन अपने में डाला ,
कभी अपना भरने को उसे खंगाला .।
छीना झपटी लूट खसूट ,
मुझको  भाता झूठ ही झूठ  ।
सफल रहा तो किस्मत अपनी ,
वरना फिर बोलूँगा झूठ ।
जी बहुत मजबूर हूँ ,
अपनों से बहुत दूर हूँ
कोई मुझे काम नहीं देता
इसलिए पेट भरने के लिए बुरे काम करता हूँ ।
इस बार माफ़ कर दो आइन्दा ऐसा नहीं करूंगा ।
सच कहता हूँ मैं बहुत शर्मिंदा हूँ ।
इंसान नहीं मैं गुस्ताखियों का पुलिंदा हूँ !
अफ़सोस मैं फिर भी ज़िंदा हूँ !
जो मुझे समझाते हैं उनका क्या ?
उनका काम है मुझे माफ़ करना ,
और मेरा धर्म गलती करना ।
जैसे सबने मुझे माफ़ करने का ठेका ले रखा हो !
पर मैं ऐसा क्यों सोचता हूँ ?
मैं सोचने के लिए थोड़े ही बना हूँ ।
मैं पैदा हुआ हूँ बुरे काम करने के लिए ,
औरों को मार कर भी जीने के लिए  ।
अपने चाहने वालों का दिल दुखाने के लिए।
क्योंकि मैं इंसान नहीं गलतियों का पुलिंदा हूँ ।
हलाँकि मैं अपने आप पे शर्मिंदा हूँ पर ॥
अफ़सोस मैं फिर भी ज़िंदा हूँ !
मैं बेशर्म हूँ इस लिए ज़िंदा हूँ ,
वरना ,
शर्म होती तो कब का मर जाता
न बेटी के आगे शर्मिन्दा होता ।
न चाहने वालों से मुंह छुपाता ।
न किसी का चैन छीनता
ना किसी के आंसुओ पे मुस्कुराता ।
काश मैं अपनी गलतियों पे सचमुच शर्मिंदा होता
तो मैं गलतियों का पुतला नहीं इक  इंसान होता !
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
2 comments:
रचना में अच्छा आत्ममंथन किया है।बढिया!
paramjeet bali ji ,
hauslaa afzaaie ke liye dhanywad !
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