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Monday, March 16, 2009

बाप और बच्चे का वार्तालाप

आ ! बच्चे अब बाहर आ जा ,
देर न कर आ जल्दी आ जा .
ये है रंग रंगीली दुनिया , लगती है सपनीली दुनिया .
कैसे इसको छोड़ के आऊँ ? तेरी दुनिया से घबराऊँ .
बोलो फिर क्यों बाहर आऊँ ?
ये भी रंग - रंगीली दुनिया , ये भी तो है तेरी दुनिया .
हैं सब तुझको चाहने वाले, तेरे नाज़ उठाने वाले .
देखो सब हैं बांह पसारे , तुझे पुकारे सांझ सखा रे .
आ बच्चे अब बाहर आ जा .
देर न कर आ जल्दी आ जा .
बात तुम्हारी मुझे डराती , भेदभाव का भय दिखलाती .
कुछ ऐसा अहसास है मुझको , ढोंग बहुत है उस दुनिया में .
मुझको प्यारी अपनी दुनिया , पाक साफ़ छोटी सी दुनिया .
क्यों न मैं इस पर इतराऊँ , बोलो क्यों मैं बाहर आऊँ ?

माना भेदभाव है इसमें , जोड़ और बिखराव है इसमें .
दुःख के साथ-साथ हैं सुख भी , नए-नए अंदाज़ हैं इसमें .
कुछ खट्टी कुछ मीठी बातें , अंधियारी और उजली रातें .
आओ तुमको सभी दिखाऊँ , लेकिन पहले बाहर आओ .
देर करो मत ! जल्दी आओ ...........
ऐसे मुझको मत बहलाओ , मुझको अपनी दुनिया अच्छी .
छोटा सा संसार है मेरा , छोटा सा घर बार है मेरा .
रंग रूप का भेद नहीं है , यहाँ कोई लिंग भेद नहीं है .
मैं जब खुश हूँ अपने घर में , फिर बोलो क्यों बाहर आऊँ ?

छोडो अब वो रैन बसेरा , तुझे बुलाए नया सवेरा .
तेरी माता तड़प रही है , सुन तो ! कैसे बिलख रही है .
दर्द को उसके अब तो समझो, मेरे बच्चे कुछ तो समझो.
मत उसको तुम और सताओ , आओ जल्दी से आ जाओ .

माना कि वो तड़प रही है , और दर्द से बिलख रही है.
लेकिन मैं ये कैसे भूलूँ ? अपनी ऐश को कैसे भूलूँ ?
बिन मांगे सब मिलता मुझको, कुछ भी यहाँ न खलता मुझको .
इतनी अच्छी दुनिया तजकर ,
कैसे मैं उस जग में आऊँ ?

देर करो मत अब तुम ज्यादा ,
मैं करता हूँ इतना वादा .
यहाँ तुम्हें कोई कष्ट न होगा , यकीं करो कुछ कष्ट न होगा .
उस दुनिया जैसी ही तुमको , अपनी माँ की गोद मिलेगी .
भेद भाव न होगा तुमसे , अपने हक की ख़ुशी मिलेगी .
बस ! अब इसको मत तड़पाओ !
आओ जल्दी से आ जाओ !

लगता है कुछ बिछुड़ रहा है , अब ये डेरा उजड़ रहा है .
ख़त्म हुआ अब दाना पानी , अब याँ रहना है बेमानी .
मेरी माता तड़प रही है , दर्द से इतनी मचल रही है .
कैसे अब मैं आँखें मूंदूं ? जी करता है बाहर कूदूं .
तेरे वादे पर भी मुझको , हाँ हाँ इत्मीनान हुआ है .
अपना वादा भूल न जाना ,भेद भाव से दिल न दुखाना .
अच्छा माँ अब और न तड़पो !
तेरा पेट मैं छोड़ रही हूँ . ....
तेरी गोद की खातिर देखो , मैं इस घर को छोड़ रही हूँ .
x x x x x x x x x x
फिर मेरी कुछ तंद्रा टूटी , कोई मुझे झंझोड़ रहा था .
बाहर ठिठुरन थी कुछ ज्यादा , अन्दर से कुछ शोर हुआ था .
मेरी नातिन दौड़ी आई , एक ख़ुशी कि खबर सुनाई .
तुम्हें मुबारक ! लक्ष्मी आई , इक बच्ची तेरे घर आई .

गोद लिया तो देखा उसको ,
आँख खोल वो घूर रही थी .
जैसे मुझसे पूछ रही थी !
याद अभी तक है क्या वादा ?

बेशक ! बेशक ! याद है मुझको
और हमेशा याद रहेगा .
भेद भाव हरगिज़ न होगा .
भेद भाव हरगिज़ न होगा .

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