अल्हड़पन को छोड़ के इक्दम मैं इस घर मैं आई ,
खेल सभी छूटे बचपन के छूटे सारे बन्धु भाई ,
छूटा वो फ़िर उधम मचाना फुदक-फुदक कर आना-जाना ,
बेमतलब वो शोर मचाना इसे सताना उसे सताना ,
लड़कों जैसे दिन भर रहना जिम्मेदारी ना बाबा ना ।
खेल तमाशे छुपा छुपी के उछलकूद वो अल्हड़पन की
शब्दों में कैसे ढालो गे ? सभी शरारत वो बचपन की !
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे  !
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
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