उठती नहीं नज़र तेरे हुस्न की तरफ ,
तारीफ क्या करूं उस माहताब की ।
सारे जहाँ का नूर तुझी में समां गया,
तारीफ क्या करूं उस आफताब की ।
मेरे लिए हसीं हो सारे जहान से ,
तारीफ किस तरह करूं कहिये जनाब की ।
तुम सर से पाँव तक किसी जन्नत का खवाब हो ,
तारीफ क्या करूं हुस्न-ए- लाजवाब की ।
परियों के देश से कोई उतरी है अप्सरा ,
हर अंग से उट्ठे है किरण महताब की ।
चुन्धिया गई नज़र उठते ही जब प्रदीप
उठेंगी किस तरह ये जानिब जनाब की .
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