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Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे - 7

जाने कोख भरी फ़िर कैसे , सूनी सेज सजी हो जैसे ।
पतझड़ के उस जीवन में, नई बहारें आई जैसे ।
लेकिन मेरा भाग है खोटा, खुशी भी पल में खो जाती है ।
इक खुशी के पीछे एक दुःख , देर तलक अँखियाँ रोती हैं ।
जो नही जन्मा अब तक जग में , उसे दान में दे आया वो ।
खुशियों की आहट से पहले , खुशी दान में दे आया वो ।
जब वो नन्हीं घर में आई , उसे देखकर में मुसकाई ।
पेर ये खुशी भी पल भर की थी,पल में अँखियाँ फ़िर भर आई ।
वो जिस घर जाने वाली थी ,वहाँ भी एक शैतान था रहता ।
वो तो इससे भी बढ़ कर था ,नशा , ऐब सब में बढ़कर था ।
क्या होगा नन्ही सी जाँ का , क्या होगा नन्ही -सी माँ का ।
यही सोचकर रोती रहती, लहू टपकता था आंखों से ।
मेरे अब , बच्ची के कल की चिंता को शब्दों में ...
कैसे लिखोगे ?
कैसे तुम कविता लिखोगे ? हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे

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