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Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे - 6

सूनी अंधियारी रातों में गुम हुई वो नन्ही गुडिया ।
भूल गई सब उछल-कूद अब ,क़ैद हुई वो छोटी चिडिया ।
सारी खाहिश दूर हुई हैं सपने चकना चूर हुए हैं ।
रंग नही कुछ इस जीवन में ,बेरंग है ये सारी दुनिया ।
मतलब की ये सारी दुनिया ,लगती है बेगानी दुनिया ।
अपना नही नज़र आता है ,सपना भी अब गैर लगे है ।
छोटी सी चिडिया को अब ,सारे जग से बैर लगे है ।
दिल के इक कोने में लेकिन , इक हसरत है अब भी बाकी ।
दर्द-ओ -गम के इस आलम में ,अब भी है कुछ ज़िंदा बाकी ।
तोड़ के इन सारे पिजरों को ,दूर गगन में मैं उड़ जाऊं ।
सब कुछ हो रंगीन वहाँ पर , इन्द्रधनुष पे मैं इठलाऊँ ।
टूटे सपने , छूटे अपने ,जिंदा हसरत , रंग की चाहत
को शब्दों मेंक्या लिखोगे? हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे

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