
वेश्या !
ऐसी औरत रेल की पटरी की तरह होती है ,
जो ताउम्र भीड़ में रहकर भी तनहा होती है ,
गर्मी और सर्दी , उसके जीवन में दो ही मौसम होते हैं ।
गर्मी आती है to वो अपनी टाँगे फैला लेती है ,
और सर्दी आती है तोअपनी टाँगे सिकोड़ लेती है ।
लोग उसकी ज़िंदगी में रेल की तरह आते हैं ,
जो उसको बेसाख्ता रोंदते हुए बढ़ जाते हैं ।
जब उनका जी करे वो इसको झिन्झोड़ते हैं ,
और जब इसका मन चाहे तो ये ख़ुद को झिंझोड़ लेती है ।
ऐसी औरत रेल की पटरी की तरह होती है !
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
No comments:
Post a Comment