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Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे -5

रोज वो पीकर घर में आता ,जाने क्या-क्या करके आता ।

वो बदबू मैं शब भर सहती , तकिये पे मुंह धर कर रोती।

गीले तकिये से ये कहती ,काश ! मुझे वो अपना कहता .

बांहों में वो अपनी भर के , मुझको अपना सपना कहता .

रस्म एक करके वो पूरी ,मुंह उधर करके सो रहता .

दो जिस्मों के बीच में पसरी ,मीलों लम्बी रही वो दूरी .

वो बदबू वो सूनी रातें , सूनी बाँहें , सूने सपने .

दो जिस्मों के बीच वो रिश्ता , वो आँखों से लहू जो रिसता.

उन सबको तुम क्या लिखोगे ? हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे !

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