रोज वो पीकर घर में आता ,जाने क्या-क्या करके आता ।
वो बदबू मैं शब भर सहती , तकिये पे मुंह धर कर रोती।
गीले तकिये से ये कहती ,काश ! मुझे वो अपना कहता .
बांहों में वो अपनी भर के , मुझको अपना सपना कहता .
रस्म एक करके वो पूरी ,मुंह उधर करके सो रहता .
दो जिस्मों के बीच में पसरी ,मीलों लम्बी रही वो दूरी .
वो बदबू वो सूनी रातें , सूनी बाँहें , सूने सपने .
दो जिस्मों के बीच वो रिश्ता , वो आँखों से लहू जो रिसता.
उन सबको तुम क्या लिखोगे ? हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे !
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