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Tuesday, March 04, 2008

हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे -९

गम की आग में जलकर जच्चा , रो-रो कर बेहाल हुई फ़िर ।
भूख प्यास सब हो गई गायब , सूखा-सा कंकाल हुई फ़िर ।
जिसने मुझको था गम बख्शा , मजबूरी में उसे पुकारा ।
मुझे बचा लो मेरे साजन ,मुझे संभालो मेरे साजन ।
उस जालिम के दिल में जाने , थोडी सी दया चली आई ।
बस मेरा इलाज करा कर ,मुझ दुखिया की जान बचाई ।
माँ जैसी उस सास को भी , मेरे गम का अहसास हुआ ।
बच्ची को हम कहीं ना देंगे अपनेपन से ये उसने कहा।
उसके मुश्ताक्बिल की चिंता , मेरे जर्जर यौवन को
तुम शब्दों में क्या लिखोगे ?
कैसे तुम कविता लिखोगे ?
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे ...

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