गम की आग में जलकर जच्चा , रो-रो कर बेहाल हुई फ़िर ।
भूख प्यास सब हो गई गायब , सूखा-सा कंकाल हुई फ़िर ।
जिसने मुझको था गम बख्शा , मजबूरी में उसे पुकारा ।
मुझे बचा लो मेरे साजन ,मुझे संभालो मेरे साजन ।
उस जालिम के दिल में जाने , थोडी सी दया चली आई ।
बस मेरा इलाज करा कर ,मुझ दुखिया की जान बचाई ।
माँ जैसी उस सास को भी , मेरे गम का अहसास हुआ ।
बच्ची को हम कहीं ना देंगे  अपनेपन से ये उसने कहा।
उसके मुश्ताक्बिल की चिंता , मेरे जर्जर यौवन को  
तुम शब्दों में क्या लिखोगे ?
कैसे तुम कविता लिखोगे ?
हूँ ! तुम मुझपे कविता लिखोगे ...
![[lock2.bmp]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXgUWgEg5i7Hjk49lYgKlp2Wns2wHjtEylFNmlRZ2PA9hhdWx9zV9uap5jRaXgwEUeZr9KSsdj_Nf9NnD7yEekcZuD5uy4_-BwhPrpiqTld3U1wsy4Q-c_DrDYwIk6yN7SGfBvz97qprY/s1600/lock2.bmp) 
 
 
No comments:
Post a Comment