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Friday, March 07, 2008

होली

फ़िर फागुन आया है यारों !
फ़िर आई है होली ।
भूल के सारे भेदभाव को
खेलेंगे हम होली ।
गोरा हो या काला कोई
सब को मलें गुलाल ,
रंग भेद मिट जाएं
सारे कर दें लालमलाल
सबको गले लगाके
खेलेंगे हम होली ।
सदियों पहले रूठ गई जो
भीड़ भाड़ में छूट गई जो
शायद अब के फागुन में
वो भी आए खोली में
अपने रंग में रंगने उसको
खेलेंगे हम होली।
अब तक जिससे कभू ना बोले
प्यार का राज कभू ना खोले
म्हारे घर के आगे से जब ,
गुजरेगी वो हौले-हौले
मारेंगे उसपे पिचकारी
खेलेंगे हम होली ।
सारी नफरत मिटेंगी अब के
दुश्मन भी गल मिलेंगे अब के ।
छोट बडाई सभी मिटेगी ,
सब तकरार मिटेंगे अब के ।
सब को प्रेम के रंग में रंगने
खेलेंगे हम होली

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

प्रदीप जी बढिया रचना है।आप को होली की मुबारक।

Pradeep Kumar said...

dhanyawad aur holi mubarak